Friday, 19 April 2024

 सुख की उपेक्षा क्यों?

मेरे पास लोग आते हैं। जब वे अपने दुख की कथा रोने लगते हैं, तो बड़े प्रसन्न मालूम होते हैं। उनकी आंखों में चमक मालूम होती है। जैसे कोई बड़ा गीत गा रहे हों! अपने घाव खोलते हैं, लेकिन लगता है जैसे कमल के फूल ले आए हैं। सुख की...

Published on 19/07/2023 6:00 AM

सुख के स्वभाव में डूबो

लगता है, आदमी दुख का खोजी है। दुख को छोड़ता नहीं, दुख को पकड़ता है। दुख को बचाता है। दुख को संवारता है; तिजोरी में संभालकर रखता है।  दुख का बीज हाथ पड़ जाए, हीरे की तरह संभालता है। लाख दुख पाए, पर फेंकने की तैयारी नहीं दिखाता। जो लोग...

Published on 18/07/2023 6:00 AM

कर्त्तव्य को बनाएं सर्वोपरि लक्ष्य

अध्यापक ने विद्यार्थियों से पूछा- ‘रामायण और महाभारत में क्या अंतर है?’ विद्यार्थियों ने अपनी-अपनी समझ के अनुसार उत्तर दिए। अध्यापक को संतोष नहीं हुआ। एक विद्यार्थी ने अनुरोध किया- ‘आप ही बताइए’ अध्यापक बोला-रामायण और महाभारत में सबसे बड़ा अंतर है ‘हक-हकूक’ का। रामायण में राम ने अपना अधिकार छोड़ा,...

Published on 16/07/2023 6:00 AM

व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया

बदलाव का क्रम निरंतर चलता है। जैन दर्शन इस क्रम को पर्याय-परिवर्तन के रूप में स्वीकार करता है। पर्याय का अर्थ है अवस्था। प्रत्येक वस्तु की अवस्था प्रतिक्षण बदलती है। यह जगत की स्वाभाविक प्रक्रिया है।कुछ अवस्थाओं को प्रयत्नपूर्वक भी बदला जाता है।स्वभाव से हो या प्रयोग से, बदलाव की...

Published on 15/07/2023 6:00 AM

दूसरों के दुख से अपना दुख ज्यादा बेहतर

एक कहावत है राजा दुखी, प्रजा दुखी सुखिया का दुख दुना। कहने का अर्थ यह है कि संसार में जिसे देखो वह अपने को दुखी ही कहेगा। राजा का अपना दुख है, प्रजा का अपना और जिसे आप सुखी माने बैठें हैं उससे पूछ कर देंखेंगे तो वह भी अपने...

Published on 14/07/2023 6:00 AM

प्रकाशस्रोत परमात्मा 

परमात्मा या भगवान ही सूर्य, चन्द्र तथा नक्षत्रों जैसी प्रकाशमान वस्तुओं के प्रकाशस्रोत हैं। वैदिक साहित्य बताता है कि वैकुंठ राज्य में सूर्य या चन्द्रमा की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्योंकि वहां परमेश्वर का तेज विद्यमान है। भौतिक जगत में ब्रम्हज्योति या भगवान का आध्यात्मिक तेज भौतिक तत्वों से ढका रहता...

Published on 13/07/2023 6:00 AM

 अंतर्दृष्टि से अनुबंधित है ज्ञान

बुद्धि अच्छी चीज है, पर कोरी बौद्धिकता ही सब कुछ नहीं है। इससे व्यक्ति के जीवन में नीरसता और शुष्कता आती है। ज्ञान अंतर्दृष्टि से अनुबंधित है, इसलिए यह अपने साथ सरसता लाता है। ज्ञानी व्यक्तियों के लिए पुस्तकीय अध्ययन की विशेष अपेक्षा नहीं रहती। भगवान महावीर ने कब पढ़ी...

Published on 12/07/2023 6:00 AM

 भगवान की विचारणाएं

जब मनुष्य इस जिम्मेदारी को समझ ले कि मैं क्यों पैदा हुआ हूं और पैदा हुआ हूं तो मुझे क्या करना चाहिए? भगवान द्वारा सोचना, विचारना, बोलना, भावनाएं आदि अमानतें मनुष्य को इसलिए नहीं दी गई हैं कि उनके द्वारा वह सुख-सुविधाएं या विलासिता के साधन जुटा अपना अहंकार पूरा...

Published on 11/07/2023 6:00 AM

 प्रार्थना की पुकार 

यदि प्रार्थना सच्ची हो तो परमपिता परमेश्वर उस प्रार्थना को जरूर ही सुनते हैं। परमपिता परमेश्वर अत्यंत कृपालु और दयालु हैं, परंतु प्रार्थना के लिए भी हृदय का पवित्र और निर्मल होना अत्यंत आवश्यक है। मन का पवित्र होना, अहंकार और अभिमान से रहित होना नितांत आवश्यक है। ऐसे पवित्र-हृदय-अंत:...

Published on 10/07/2023 6:00 AM

विवेक ही धर्म है   

युग के आदि में मनुष्य भी जंगली था। जब से मनुष्य ने विकास करना शुरू किया, उसकी आवश्यकताएं बढ़ गई। आवश्यकताओं की पूर्ति न होने से समस्या ने जन्म लिया।समस्या सामने आई तब समाधान की बात सोची गई। समाधान के स्तर दो थे- पदार्थ-जगत, मनो-जगत. प्रथम स्तर पर पदाथरे के...

Published on 09/07/2023 6:00 AM