
इन्दौर । राम और कृष्ण के बिना भारत भूमि पर धर्म और संस्कृति की कल्पना भी संभव नहीं है। कृष्ण इस पुण्यधरा के कण-कण में और राम जन जन के रोम-रोम में रचे बसें है। हमारे अहंकार का विसर्जन किए बिना हमारा कोई कार्य कभी सफल नहीं हो सकता। कृष्ण नाम के अमृत का पान करेंगे तो किसी सत्संग के पांडाल में गिरेंगे लेकिन मदिरा पान करेंगे तो खुद को ही पता नहीं रहेगा कि कहां गिरे हैं।
ये दिव्य विचार हैं भागवताचार्य पं. विवेककृष्ण शास्त्री के, जो उन्होंने लोहारपट्टी स्थित श्रीजी कल्याण धाम के वार्षिकोत्सव में विश्व को कोरोना से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना के साथ चल रहे भागवत ज्ञानयज्ञ में कृष्ण जन्मोत्सव प्रसंग पर उपस्थित भक्तों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। जन्मोत्सव के लिए कथा मंडप को विशेष रूप से श्रृंगारित किया गया था। जैसे ही भगवान के जन्म की उदघोषणा हुई, भक्तों ने ‘आलकी की पालकी जय कन्हैया लाल की...’ भजन पर थिरकते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। हंस पीठाधीश्वर स्वामी रामचरण दास महाराज ने कृष्ण जन्म की महत्ता बताई। बच्चों के लिए टॉफी और बिस्किट की वर्षा की गई। इसके पूर्व आयोजन समिति की ओर से पवन-वर्षा शर्मा, राजेंद्र गर्ग, हवनसिंह चावड़ा, प्रेमस्वरूप खंडेलवाल, सनाढ्य सभा के पं. जगदीश पचौरी एवं परशुराम महासभा के प्रदेशाध्यक्ष पं. वीरेंद्र शर्मा ने व्यासपीठ का पूजन किया। श्रीजी कल्याणधाम पर वार्षिकोत्सव के तहत दोपहर 3 से सांय 7 बजे तक 6 जनवरी तक संगीतमय भागवत ज्ञानयज्ञ जारी रहेगा। प्रतिदिन मंदिर में नयनाभिराम श्रृंगार भी होगा। समापन बुधवार 6 जनवरी को होगा।
पं. शास्त्री ने कहा कि भगवान जन्म नहीं, अवतार लेते हैं। जब-जब पृथ्वी पर दुराचारी प्रवृत्तियां बढ़ने लगती है, भगवान किसी ने किसी रूप में अवश्य अवतार लेते हैं। सज्जनों की रक्षा और दुष्टों का दमन, भगवान के अवतार का यही लक्ष्य होता है। द्वापर काल में भी भगवान का अवतार कंस जैसे दुराचारी शासक पर अंकुश लगाने के लिए हुआ था। भगवान कृष्ण को योगीराज भी कहा जाता है। उनकी लीलाओं को समझना किसी इंसान के बूते की बात नहीं हो सकती।