
नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत से नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के 6 महीने बाद झारखंड (Jharkhand) में बीजेपी (BJP) का रियलिटी चेक हुआ. झारखंड चुनाव में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले गठबंधन ने जीत दर्ज की और बीजेपी हार गई. इसके पीछे का कारण राज्य में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुबर दास की कम लोकप्रियता होना बताया गया. ऐसा पार्टी के ही कुछ लोगों का कहना था. चुनाव से पहले झारखंड में रघुबर दास को सीएम पद से हटाने के लिए कुछ आवाजें उठीं, लेकिन हंगामे में वो गुम हो गईं. फिर पार्टी हार गई.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता अब झारखंड की इस सीख का हवाला देते हुए बताते हैं कि विजय रुपाणी समेत बीजेपी ने इस साल पहले से ही 5 मुख्यमंत्री क्यों बदले हैं. शीर्ष नेतृत्व को लगता है कि वास्तव में नुकसान होने से पहले डैमेज कंट्रोल करना सबसे अच्छा है.
हरियाणा पर नजर रखने वाले बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि इससे पहले संकेत दिखाई नहीं दे रहे थे.’ उन्होंने इसके लिए अक्टूबर 2019 में हरियाणा चुनाव का हवाला दिया. जब बीजेपी राज्य में चुनाव में बहुमत हासिल करने में विफल रही और सत्ता में रहने के लिए गठबंधन की तलाश करनी पड़ी. सीएम मनोहर लाल खट्टर की छवि को पार्टी की कीमत चुकानी पड़ी. हालांकि उन्हें फिर से मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया और मौजूदा समय में वह बीजेपी के सबसे उम्रदराज मुख्यमंत्री हैं.
सूत्रों का कहना है कि झारखंड चुनाव के नतीजे और हरियाणा में हार के करीब पहुंचने से बीजेपी को अहसास हुआ कि अलोकप्रिय और काम न करने योग्य मुख्यमंत्रियों को हटाया जाना चाहिए. ऐसा अगले चुनाव से पहले ही करना चाहिए. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने न्यूज18 के बताया, ‘पार्टी लगातार मुख्यमंत्रियों के बदलाव के लिए आलोचना को लेकर भी तैयार है, लेकिन अब चुनाव हारने के लिए तैयार नहीं है. अंतिम नतीजे प्राप्त करने के लिए सभी साधनों का उपयोग किया जाएगा.’
क्या यह चलन जारी रहेगा? हरियाणा, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर पहले से ही चर्चा है कि बीजेपी का अगला कदम क्या होगा. हिमाचल प्रदेश में गुजरात के साथ 2022 के अंत में चुनाव होंगे, जबकि मध्य प्रदेश में 2023 के अंत में चुनाव होंगे.
इस तरह का पहला कड़ा फैसला तब आया था जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस साल की शुरुआत में उत्तराखंड के सीएम पद से हटा दिया गया था. ऐसा उनके उनके कुछ विवादास्पद फैसलों से लोगों को हुई परेशानी के कारण किया गया था. राज्य में हरीश रावत के नेतृत्व में पुनर्जीवित कांग्रेस के बीच 2022 के उत्तराखंड चुनावों पर इसका असर पड़ने की संभावना है. उनकी जगह सीएम बनाए गए तीरथ सिंह रावत को भी पांच महीने बाद हटाना पड़ा था.
बीजेपी का ऐसा दूसरा फैसला असम में दिखा. वहां चुनावों में पार्टी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को सीएम चेहरे के रूप में पेश नहीं किया. असम में बीजेपी को कांग्रेस-अजमल गठबंधन से चुनौती का सामना करना पड़ा और एक आम धारणा बनी हुई थी कि हिमंत बिस्वा सरमा अधिक लोकप्रिय व्यक्ति थे. बीजेपी ने राज्य में चुनाव जीतने के बाद सोनोवाल को सीएम पद से हटाया और सरमा को सीट सौंपी.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को उनकी बढ़ती उम्र के आधार पर हटाना बीजेपी द्वारा एकमात्र दक्षिणी राज्य में नेतृत्व में एक पीढ़ीगत बदलाव लाने के लिए लिया गया एक और ऐसा निर्णय था, जहां पार्टी सत्ता में है. इसने पार्टी नेतृत्व के अधिकार पर भी जोर दिया कि यह 2023 में कर्नाटक चुनाव जीतने के लिए येदियुरप्पा की विरासत पर निर्भर नहीं है.