ग्वालियर। कल्पना चावला, सानिया मिर्जा और शाइना नेहवाल। यह तमाम नाम एेसे हैं। जिन्होंने साबित किया है कि सम्मान और समानता दी जाए, तो महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। संविधान के आर्टिकल 14 में ये अधिकार उन्हें मिला है।

हम नारी को ये प्रदान कर उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल कर सकते हैं। यह बात सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता मोनिका अरोरा ने कही। मोटल तानसेन में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय की ओर से महिलाओं के संबंध में भारतीय दृष्टि और मीडिया विषय पर हुई कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहीं थीं।

मोनिका ने कहा कि जन्म से महिलाओं को चुनौतियां मिलती हैं। और जिंदगीभर उसे सम्मान की लड़ाई लडऩी पड़ती है। यह  हालत हमारे देश की नहीं बल्कि पूरे विश्व में नारी को संघर्ष करना पड़ा है। स्विट्जरलैंड जैसे देश में उसे 1971 में वोट डालने का अधिकार मिला। रोमन में तो अभी भी उनके पास यह अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि समानता के लिए घर से शुरूआत करनी होगी। अपनी संस्कारयुक्त शिक्षा की स्कूलों में देनी होगी। तभी समानता और सम्मान उन्हें मिल पाएगा। मुख्य अतिथि के तौर पर महिला एवं बाल विकास मंत्री माया सिंह उपस्थित थीं। अध्यक्षता पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बृजकिशोर कुठियाला ने की।

जो न्याय नहीं दिलाते वो कानून बदल डालें
समाज में अव्यवस्था से कानून टूटता है और जब न्याय की मांग होती है। तब अन्याय हाथ आता है। क्योंकि कई बार कानूनन न्याय नहीं मिल पाता। मुगलों और अंग्रेजों को दोष दिया जाता रहा है। मगर खुद के अंदर नहीं झांका। पिछले साठ सालों में हम क्या कर पाए। जो कानून महिला और पुरुष को न्याय नहीं दिला सकते।

उन्हें हटा क्यों नहीं देते। यह बात माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला ने कही। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में पत्नी के अतिरिक्त नारी को बहन और मां का दर्जा दिया जाता है। और जगह यह नहीं है।

हमें हमारी संस्कृति की ओर लौटना होगा। और मीडिया को सत्यम् शिवम और सुंदरम् के आदर्श वाक्य के साथ सकारात्मक पत्रकारिता की ओर बढऩा होगा। प्रोफेसर कुठियाला ने पुरातन संस्कृति का उदाहरण देते हुए तलाक को समाज का हिस्सा होने से इंकार किया।  

छह फीसदी समाचार ही लैंगिक समानता के
माया सिंह ने कहा कि यूनाइटेड नेशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मीडिया में छह प्रतिशत खबरें ही लैंगिक समानता की आती हैं। 46 प्रतिशत में भेदभाव होता है। हालांकि बाल विवाह जैसे मामलों को कम करने में मीडिया की सराहनीय भूमिका रही है। फिर भी बाल संरक्षण, समाज कल्याण और महिला आयोग के और प्रसार की जरूरत मीडिया के जरिए बाकी है।