नई दिल्ली । गोरखा जवान भारतीय सेना की रीढ़ हैं। लेकिन कई कारणों से गोरखा सैनिकों की भर्ती कम होने की खबर है। सेना की तरफ से हालांकि कोई ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए गए हैं, लेकिन सरकारी सूत्रों ने कहा कि नेपाली गोरखे हों या भारतीय, सेना को नहीं मिल पा रहे हैं। सरकारी सूत्रों ने कोई आंकड़ा नहीं बताया लेकिन यह माना की सेना को जरूरत के हिसाब से गोरखे नहीं मिल रहे हैं। दरअसल, पिछले साल नेपाल के साथ कालापानी के मसले पर हुए विवाद के बाद नेपाल में कई समूहों की तरफ से गोरखा नौजवानों से भारतीय सेना में नहीं जाने की अपील की जाने लगी। नेपाल के तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने भी 1947 में हुए ब्रिटेन-भारत-नेपाल त्रिपक्षीय समझौते को रद्द कर नए समझौते की मांग कर रखी है। सरकारी सूत्रों की मानें तो यह कोई एक अकेला कारण नहीं है जिससे गोरखाओं का सेना में आना कम हुआ हो। उक्त अधिकारी ने बताया कि ब्रिटेन समेत कई देशों की सेनाओं में गोरखाओं की भर्ती होती है। सिंगापुर समेत कई देशों की पुलिस में भी गोरखा हैं। उससे भी ज्यादा उनकी मांग निजी सुरक्षा एजेंसियों में बढ़ी है। ईरान से लेकर अफगानिस्तान तक गोरखा सुरक्षाकर्मियों की मांग हाल के दशकों में तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा बदलते वक्त के साथ गोरखा परंपरागत सुरक्षा कार्य को छोड़कर दूसरे कार्य में भी लग गए हैं। जहां वह कहीं ज्यादा पैसा कमा रहे हैं। इसलिए सेना में जाना उनकी प्राथमिकता से घट रहा है। और तो और शहरों में मोमोज बेचकर गोरखा ज्यादा पैसा कमा रहे हैं, ऐसे में वह सुरक्षा जैसे जोखिमपूर्ण पेशे से विमुख हो रहे हैं। सेना में सात गोरखा रेजीमेंट हैं, जिनकी 39 बटालियनें हैं। छह रेजिमेंट ब्रिटिश सेना से ही 1947 में हुए समझौते के तहत मिली थी। तब चार रेजिमेंट ब्रिटेन ने खुद भी रख ली थी। एक रेजिमेंट देश में आजादी के बाद बनी। मौजूदा 39 बटालियन में आखिरी बटालियन 2015 में बनी थी। यह बटालियन विशेष रूप से भारतीय गोरखाओं के लिए बनी। सेना में करीब 32 हजार गोरखा जवान कार्यरत हैं, जिनमें से ज्यादातर नेपाली गोरखा हैं। हर साल एक से डेढ़ हजार गोरखा सेना में भर्ती होते हैं। अब यह संख्या घटने लगी है। ब्रिटिश काल में गोरखा रेजिमेंट की स्थापना 1815 में अल्मोड़ा में हुई थी। हालांकि, 17वीं सदी में ईस्ट इंडिया कंपनी में गोरखाओं को सुरक्षा गार्ड के रूप में भर्ती किया जाने लगा था।