लंदन । ब्रिटेन की मैनचेस्टर मिनशुल स्ट्रीट क्राउन कोर्ट ने 2001‑06 के रोचडेल बाल यौन शोषण कांड में सात पाकिस्तानी‑मूल पुरुषों को बलात्कार और यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया। निर्णय के साथ ही 19 वर्ष पुराने मामले में पीड़िताओं को न्याय मिला है।
अभियोजन के अनुसार, ‘गर्ल ए’ और ‘गर्लबी’ नामक दो स्कूली छात्राओं को 13 वर्ष की आयु से ही शराब, ड्रग्स और ठिकाने मुहैया कराने का लालच देकर बार‑बार दरिंदगी का शिकार बनाया गया। लड़कियों का शोषण गंदे फ्लैटों, कारों, पार्किंग‑लॉट और सुनसान गोदामों में हुआ, एक पीड़िता के अनुसार संभवत: “200 से अधिक पुरुषों” ने उसका बलात्कार किया।
दोषियों में मोहम्मद जाहिद (64) प्रमुख भूमिका में था, जिसे बाज़ार में अपनी लॉन्जरी स्टॉल पर ‘बॉस‑मैन’ कहा जाता था। आरोपी ने कपड़े, पैसे व खाना देकर यौन संबंध की मांग की। मुश्ताक अहमद (67) और कासिर बशीर (50) ने तहखाने में अश्लील हरकतें कीं, बशीर फ़रार है। टैक्सी चालक मोहम्मद शहज़ाद (44), नाहीम अकरम (48) व निसार हुसैन (41) तथा पूर्व दोषी रोहीज खान (39) भी बलात्कार में लिप्त है। एक अन्य आरोपी अरफान खान सबूत न मिलने पर बरी हुआ।
अदालत ने पाया कि पुलिस एवं सामाजिक सेवाओं के पास लंबे समय तक शिकायतें थीं, फिर भी कड़ी कार्रवाई नहीं हुई। पुलिस प्रमुख ने फैसला आने पर खेद जताकर कहा, “हमारी लापरवाही अक्षम्य थी, इसके लिए हम माफी माँगते हैं।”
यह फैसला ‘ऑपरेशन लिटन’ के तहत चल रही व्यापक जांच का हिस्सा है, जिसके तहत अब तक 37 लोगों पर आरोप लगे हैं और पाँच नए मुकदमे सिंतबर से शुरू होने है। न्यायाधीश जोनाथन सीली ने दोषियों को “लंबी कारावास” की चेतावनी देते हुए सजा सुनाने की तारीख बाद में तय करने का आदेश दिया।
मामले ने ब्रिटेन में जातीयता बनाम लैंगिक एवं वर्गीय शोषण की बहस फिर तेज कर दी है। यौन अपराधों के कुल आँकड़ों में जहाँ 88 प्रतिशत अपराधी श्वेत ब्रिटिश हैं, रोचडेल एवं रोथरहैम जैसे हाई‑प्रोफ़ाइल मामलों में पाकिस्तानी‑मूल दोषियों की अधिक संख्या ने सामाजिक असहजता बढ़ाई है। फिर भी विशेषज्ञों का मत है कि निर्धन, असुरक्षित किशोरियाँ अब भी सबसे आसान निशाना हैं—भले ही अपराधी किसी भी पृष्ठभूमि के हों।