पटना। कांग्रेस की चाल-ढाल राजद को पूर्णतया आश्वस्त नहीं होने दे रही। असहजता का एक कारण मुस्लिम मतों में बिखराव की चिंता भी है, जो राजद के माय (मुसलमान-यादव) समीकरण का एक मजबूत स्तंभ है।
बिहार में सीमांचल की 24 सहित विधानसभा की लगभग 40 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक हैं। इस दोहरी चिंता के बीच राजद के लिए एक आसरा ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) का है।
इस बार एआइएमआइएम को भी अपने स्तर से किसी प्रभावी गठबंधन की आशा नहीं। ऐसे में अंदरखाने दोनों एक-दूसरे को साधने में लगे हैं।
हालांकि, विधायकों के तोड़-फोड़ के पुराने कारनामों और सीटों के लिए मारामारी से हिचकिचाहट भी कम नहीं। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि कांग्रेस पर्याप्त संख्या में पसंदीदा सीटों के लिए राजद पर दबाव बनाए है।
अंदरूनी सच्चाई में एक कारण जनाधार भी है। मुसलमान कभी कांग्रेस का पक्षधर हुआ करते थे, जो बाद में लालू के लिए भी प्रतिबद्ध हुए। अब एआइएमआइएम के अलावा जन सुराज पार्टी भी उन्हें साधने में लगी है।
लोकसभा चुनाव में विजयी रहे कांग्रेस के तीन सांसदों में से दो मुसलमान ही हैं। बिहार में भविष्य के लिए कांग्रेस को इससे बड़ा भरोसा है।
ऐसे में महागठबंधन में बड़े भाई की भूमिका वाले राजद का असहज होना स्वाभाविक है। विवशता में वह अंदरखाने अपनी गोटियां बिछाने में लगा है।
यह मानकर कि इससे कांग्रेस कुछ तो दबाव में आएगी और नहीं तो राजद के पास नुकसान की भरपाई का एक विकल्प होगा।
पिछले चुनाव में राजद को हुआ था नुकसान
विधानसभा के पिछले चुनाव में राजद को सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम के कारण ही गच्चा खाना पड़ा था।
उसकी तुलना में कांग्रेस कुछ अधिक सफल रही थी। तब एआइएमआइएम, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट बनाया था।
एआइएमआइएम 20, बसपा 78 और रालोसपा 99 सीटों पर लड़ी थी। रालोसपा का खाता नहीं खुला, जबकि बसपा से विजयी रहे एकमात्र जमां खान जदयू में चले गए, जो अभी मंत्री हैं।
सर्वाधिक सफलता एआइएमआइएम को मिली थी, जिसे सीमांचल ने पांच विधायक दिए। उनमें से चार को राजद ने अपने पाले में कर लिया।
एआइएमआइएम के साथ एकमात्र विधायक अख्तरूल ईमान रह गए, जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। वही अख्तरूल ईमान इस बार राजद से गठबंधन को लेकर सर्वाधिक उत्सुक हैं।
उनका कहना है कि सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध एकजुटता आवश्यक है। इसके लिए पुराने कारनामों और मतभेदों को भूल जाना ही बेहतर होगा। 2019 में भी हमने इसके लिए प्रयास किया था।
दूसरी ओर राजद में इस प्रकरण पर लालू और तेजस्वी के अलावा दूसरा कुछ नहीं बोलेगा। हालांकि, ऐसे गठबंधन के कारण ध्रुवीकरण की आशंका से उसके दर्जनों विधायक घुले जा रहे, जो पिछले चुनाव में कम मतों के अंतर से विजयी रहे थे।