राजस्थान के सरकारी स्कूलों में आइसीटी (सूचना और संचार प्रौद्योगिकी) लैब लगाने के लिए शिक्षा विभाग के अधीन समग्र शिक्षा अभियान की ओर से जारी 359 करोड़ की टेंडर प्रक्रिया पर सवाल खड़े होे गए हैं। आरोप है कि अधिकारियों ने चहेती फर्मों को फायदा देने के लिए टेंडर की शर्तें तय कर दीं।

दो योजना को मर्ज कर टेंडर निकालने का आरोप

दरअसल, विभाग की ओर से हाल ही स्कूलों में आइसीटी लैब लगाने के लिए 359 करोड़ का टेंडर जारी किया है। इस टेंडर में दो योजनाओं को मर्ज कर दिया। जबकि केन्द्र की ओर से स्टार योजना और एमएचआरडी की ओर से आइसीटी लैब के लिए अलग- अलग योजनाएं जारी की जाती हैं। इनका फंड भी अलग-अलग आता है। आरोप है कि विभाग ने दोनों योजनाओं को मनमर्जी से मर्ज कर एक टेंडर निकाल दिया। इसकी अनुमति केन्द्र की ओर से भी नहीं ली गई। दरअसल, स्टार योजना में लैब को स्थापित किया जाता है और आइसीटी लैब लगाने की अन्य योजना में लैब लगाकर मैनपावर भी लगाया जाता है।

क्या होती है आइसीटी लैब

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत स्कूलों में आइसीटी लैब की स्थापना की जा रही है। केन्द्र-राज्य सरकार के सहयोग से बच्चों को आधुनिक तकनीक का ज्ञान देने के लिए ये लैब लगाई जा रही हैं। इनका उद्देश्य छात्रों को डिजिटल शिक्षा से जोड़ना, कंप्यूटर और इंटरनेट का उपयोग सिखाना है। स्टार प्रोजेक्ट के तहत लैब स्थापित की जाती है और इनमें शिक्षा विभाग के स्थायी शिक्षक बच्चों को पढ़ाते हैं। एमएचआरडी स्कीम के तहत जो आइसीटी लैब लगाई जाती हैं, उनमें संविदा पर कप्यूटर शिक्षक लगाए जाते हैं।

 

टेंडर प्रक्रिया में ये खामियां

120 करोड़ का टर्न ओवर मांगा है इससे राजस्थान में इस सेक्टर की एक भी कंपनी शामिल नहीं।
प्रोफिट मेकिंग कंपनी की शर्त हटा दी, इससे बाहर की कोई भी कंपनी शामिल हो सकती है।
क्रेडिट सॉल्वेंसी सर्टिफिकेट की शर्त हटा दी।
दो योजनाओं को मर्ज करने के बाद एक स्कीम का पैसा दूसरी स्कीम में काम में लिया जाएगा, जो नियमानुसार गलत है।

खेल सामग्री वितरण में भी गड़बड़ी

सरकारी स्कूलों में खेल सामग्री वितरण को लेकर भी गड़बड़ी सामने आई थी। समग्र शिक्षा अभियान की ओर से जिस फर्म को टेेंडर दिया गया आरोप था कि उस फर्म की ओर से घटिया सामग्री स्कूलों में बांटी गई। इसको लेकर शिक्षा मंत्री ने जांच के आदेश दिए थे।