देश में इस बार मानसून सीजन (जून से सितंबर) में सामान्य से ज्यादा बारिश होने का अनुमान है। मौसम विभाग ने कहा ये 106% रह सकती है। पिछले महीने इसे 105% बताया गया था।
वहीं, जून महीने में भी बारिश सामान्य से ज्यादा होगी। मौसम विभाग (IMD) ने मंगलवार को बताया, 'देश में जून के महीने में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की संभावना है, जो 108% हो सकती है। यानी इस दौरान 87 सेमी से ज्यादा बारिश का अनुमान है। इसे लॉन्ग पीरियड एवरेज यानी LPA कहा जाता है।
एमपी, महाराष्ट्र में ज्यादा बारिश, बिहार-झारखंड में कम बारिश होने का अनुमान
- मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने बताया कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा और आस-पास के क्षेत्रों में इस बार सामान्य से ज्यादा बारिश हो सकती है। वहीं, पंजाब, हरियाणा, केरल और तमिलनाडु के कुछ इलाकों में सामान्य से कम बारिश होने का अनुमान है।
- मध्य और दक्षिण भारत में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की उम्मीद है। उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य, जबकि पूर्वोत्तर में सामान्य से कम बारिश हो सकती है।
- मानसून के कोर जोन में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा और आसपास के क्षेत्र शामिल हैं। इनमें अधिकांश बारिश साउथ वेस्ट मानसून के दौरान होती है और यह रीजन खेती के लिए मानसूनी बारिश पर बहुत ज्यादा निर्भर करता है।
क्या होता है लॉन्ग पीरियड एवरेज
इसका मतलब है कि मौसम विभाग ने 1971-2020 की अवधि के आधार पर दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) को 87 सेमी (870 मिमी) निर्धारित किया है। अगर किसी साल की बारिश 87 सेमी से ज्यादा होती है, तो उसे सामान्य से अधिक माना जाता है। अगर कम हो तो कमजोर मानसून माना जाता है।
क्या हैं भारत पूर्वानुमान प्रणाली की खासियतें?
आईआईटीएम के निदेशक सूर्यचंद्र राव के मुताबिक, "भारत पूर्वानुमान प्रणाली उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में छह किलोमीटर के दायरे तक का रिजॉल्यूशन रखता है। वहीं, ध्रुवों पर यह रेजोल्यूशन 7-8 किलोमीटर तक का है। वहीं हमारे मौजूदा सिस्टम की रेंज फिलहाल 12 किमी तक है। ऐसे में ज्यादा छोटे इलाके तक सटीक रेंज रखने वाला बीएफएस मौसम विभाग की क्षमताओं को बेहतर बनाएगा।"
केंद्रीय पृथ्वी-विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि बीएफएस भारत को मौसम भविष्यवाणी में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल करेगा। बीएफएस दुनिया का एकमात्र वैश्विक संख्यात्मक मौसम भविष्यवाणी मॉडल है, जो इतने हाई रिजॉल्यूशन पर काम करता है। यह भारत की पूर्वानुमान क्षमताओं में एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि यह सिस्टम भारत की पंचायत स्तर की जरूरतों को भी पूरा करता है।
पृथ्वी वित्रान मंत्रालय में सचिव एम. रविचंद्रन के मुताबिक, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में मौसम अस्थिर होता है। मौसम पैटर्न में बदलाव होते रहते हैं। स्थानीय स्तर के परिवर्तनों को पकड़ने के लिए ऊंचे रिजॉल्यूशन मॉडल की जरूरत होती है। ऐसे में नया मॉडल क्षेत्रीय स्तर की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी कारगर होगा।