
एक कहावत तो आपने सुनी होगी ‘अगर इरादे बुलंद हों, तो हालात कभी रास्ता नहीं रोकते. जी हां, कुछ ऐसा ही पटना जिले के पैजना गांव के रहने वाले अंकित राज ने साबित कर दिखाया है. जिसमें मददगार बनी बिहार सरकार की मुख्यमंत्री उद्यमी योजना. जिसका लाभ उठाकर अंकित ने अपनी एक नई राह बनाई और दूसरों के लिए भी उम्मीद की किरण बन गए.
कोरोना के दौरान संघर्ष की शुरुआत
कोरोना महामारी के दौरान जब देशभर में लॉकडाउन लगा. लाखों लोगों की तरह अंकित राज की भी रोज़ी-रोटी छिन गई. राम लखन सिंह यादव कॉलेज, बख्तियारपुर से जीवविज्ञान में स्नातक करने वाले अंकित दिल्ली में छोटे-मोटे काम कर अपना परिवार चला रहे थे. महामारी के दौरान उन्हें दिल्ली छोड़कर गांव लौटना पड़ा. उनके पास न नौकरी थी, न साधन. बस जीवन चलाने की चुनौती थी.
मुख्यमंत्री उद्यमी योजना ने बदली किस्मत
गांव लौटने पर अंकित को जानकारी हुई कि बिहार की नीतीश सरकार युवाओं के लिए मुख्यमंत्री उद्यमी योजना चला रही है. इसके तहत 10 लाख रुपए तक का ऋण दिया जाता है. वह भी बिना किसी गारंटी के. इसी योजना ने उनके जीवन को नई दिशा दी. तीन किश्तों में प्राप्त इस राशि से अंकित ने कॉपी निर्माण इकाई शुरू की. अंकित आज न केवल स्थानीय जरूरतों को पूरा कर रहें हैं, बल्कि दूसरे युवाओं को भी रोजगार दे रहे हैं.
गांव से उठी नई क्रांति
अंकित की यूनिट में आधुनिक मशीनें चल रही हैं, जिनसे हर दिन हजारों कॉपियां तैयार होती हैं. ये कॉपियां गांव के दुकानदारों से लेकर स्कूलों तक पहुंच रहीं है. बाढ़ जैसे पिछड़े इलाकों में, जहां अब तक महंगी कॉपियों के लिए दूसरे जिलों पर निर्भरता रहती थी. अब अंकित स्थानीय स्तर पर ही गुणवत्तापूर्ण और सस्ती कॉपियां मिल रही हैं. अंकित कहते हैं ‘हम सिर्फ कॉपी नहीं बनाते, हम शिक्षा को भी सुलभ बनाते हैं.
रोजगार और आत्मनिर्भरता
अंकित ने बताया कि उन्होंने कॉपी बनाने के काम में अपने साथ कई स्थानीय युवाओं को जोड़ा है. उनकी इस कॉपी बनाने के उद्यम से न केवल करीब 50 लोगों को सीधे तौर पर परिवार चल रहा है. बल्कि 5000 से अधिक लोगों को परोक्ष रूप से काम मिल रहा है. उनके इस साहसिक प्रयास से स्वरोजगार से आत्मनिर्भरता का रास्ता तैयार हुआ है.
चुनौतियां भी आईं, लेकिन हिम्मत नहीं हारी
अंकित बताते हैं कि व्यवसाय के शुरुआती दिनों में बाजार की प्रतिस्पर्धा, बारिश में कागज का खराब होना, समय पर पेमेंट न मिलना और कच्चे माल की कमी जैसी समस्याएं थी. लेकिन अंकित ने हार नहीं मानी. उन्होंने इन चुनौतियों को अवसर में बदला. आज वही चुनौती उनकी पहचान बन गई है.
सरकार का दूरदर्शी विजन बना युवाओं की ताकत
अंकित बताते हैं कि कभी बिहार को बीमारू राज्य के रूप में जाना जाता था. लेकिन मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के जरिए बिहार के युवा आत्मनिर्भर हो रहे हैं. जिसका असर अब दिखने भी लगा. बिहार आत्मनिर्भर राज्य बनाने की दिशा में अग्रसर है. अंकित का मानना है कि मुख्यमंत्री उद्यमी योजना युवाओं और बेरोजगारों के लिए मील का पत्थर साबित होगी. जो युवा उद्यम करना चाहता है, बिहार सरकार उसे प्रोत्साहित कर रही है.
अंकित बताते हैं, आज हजारों युवाओं ने इस योजना के तहत लोन लेकर खुद का व्यवसाय शुरू किया है. कोई डिजिटल प्रिंटिंग कर रहा है, कोई फर्नीचर बना रहा है, कोई आईटी सर्विस दे रहा है.
सरकारी नौकरी ही सब कुछ नहीं
बातचीत के दरौन अंकित कहते हैं कि युवाओं को सिर्फ सरकारी नौकरी की राह नहीं देखनी चाहिए. सरकार जो मौके दे रही है, उनका सही उपयोग करके हम खुद न केवल आत्मनिर्भर बन सकते हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे सकते हैं, उनका कहना है कि सरकारी नौकरी ही सबकुछ नहीं है.
आगे की योजना और बड़ी उड़ान
अंकित चाहते हैं कि वे अपनी यूनिट को और विस्तार दें, नई मशीनें लगाएं, और गांव-गांव तक अपनी सस्ती कॉपियों की पहुंच सुनिश्चित करें. वो कहते हैं कि हर गांव में स्वरोजगार इकाई हो, और हर हाथ के पास अपना काम हो.