उत्तर प्रदेश के कानपुर के बेहटा बुजुर्ग (साढ़ क्षेत्र) में वर्ष 2007 में हुए चर्चित हत्या के मामले में अदालत ने दिवंगत जज शिववरण सिंह की पत्नी नीलम देवी और उनके दो बेटों, यशोवर्धन और जयवर्धन को दोषी करार दिया है. यह फैसला कानपुर देहात स्थित अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे)-6 गैंगस्टर कोर्ट ने सुनाया. मामले में दोष सिद्ध होने के बाद सजा के निर्धारण के लिए 14 मई की तारीख तय की गई है.

मृतक वीरेंद्र सिंह उर्फ रज्जन सिंह गन्ना विभाग में लिपिक के पद पर सीतापुर में कार्यरत थे. वर्ष 2007 में उनके पारिवारिक चाचा और तत्कालीन जज शिववरण सिंह ने गांव स्थित वीरेंद्र की जमीन पर दीवार बनवाकर कब्जा करने का प्रयास किया. विरोध के बाद वीरेंद्र ने कोर्ट से स्टे प्राप्त कर लिया. आरोप है कि इसी बात से आक्रोशित होकर 29 अप्रैल 2007 की शाम करीब 6:30 बजे शिववरण सिंह ने अपने बेटों व परिजनों के साथ मिलकर वीरेंद्र पर लाठी व कुल्हाड़ी से हमला कर दिया.

इस हमले में वीरेंद्र की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि उनका बेटा नवनीत भी गंभीर रूप से घायल हो गया. नवनीत उस समय सेना में तैनात थे. आरोपियों ने उन्हें मृत समझकर घटनास्थल से फरार हो गए.

2017 में शिववरण सिंह की मौत

घटना के बाद पुलिस ने पीड़ित परिवार की तहरीर पर शिववरण सिंह, उनकी पत्नी नीलम देवी, बेटों यशोवर्धन, जयवर्धन और बहू शीलू के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू की. चार्जशीट दाखिल होने के बाद मुकदमे की सुनवाई चलती रही. इस दौरान वर्ष 2017 में शिववरण सिंह की बीमारी की वजह से मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनका नाम मुकदमे से हटा दिया गया. मुकदमे की सुनवाई के दौरान कोर्ट में अंतिम बहस के लिए अभियोजन पक्ष की ओर से एडीजीसी विजय त्रिपाठी ने पक्ष रखा. कोर्ट ने बहू शीलू को साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त कर दिया, जबकि नीलम देवी, यशोवर्धन और जयवर्धन को दोषी माना गया.

विवादों से जुड़ा रहा था जज का अतीत

पूर्व न्यायाधीश शिववरण सिंह की नियुक्ति प्रदेश के कई जिलों में रही, जिनमें फर्रुखाबाद, रामपुर और लखनऊ शामिल हैं. कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में फैसले सुनाए, जिससे वे अक्सर विवादों में रहे. लखनऊ में जिला जज के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने विवादित संपत्तियों की खरीद-फरोख्त शुरू कर दी. स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि शिववरण सिंह ने कई किसानों की जमीनों पर अवैध कब्जा किया. दबी जबान में ग्रामीण यह भी कहते थे कि भदेवना गांव के एक किसान ने कथित रूप से उनके दबाव में आत्महत्या भी कर ली थी.

18 साल बाद मिला इंसाफ

मृतक वीरेंद्र के भाई जितेंद्र सिंह ने कहा कि 18 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद न्याय मिलना उनके परिवार के लिए राहत की बात है. इस मुकदमे की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र सिंह गौतम, सुबोध नारायण त्रिपाठी और राजेश द्विवेदी ने की. वीरेंद्र के तीन बेटे थे. नवनीत वर्तमान में सेना में राजस्थान में तैनात हैं, जबकि सबसे बड़े बेटे अजय की मृत्यु हो चुकी है. सबसे छोटे बेटे विशाल की तैनाती भी गन्ना विभाग में है.

दोषियों को सजा सुनाए जाने के लिए अदालत ने अब 14 मई की तारीख नियत की है. इसी दिन कोर्ट सभी दोषियों को सजा सुनाएगी. पीड़ित पक्ष के अधिवक्ता ने कड़ी से कड़ी सजा की मांग की है.