नई दिल्ली कोरोना की दूसरी लहर के बीच देश के पांच राज्यों में चुनावी रैलियां हो रही थीं। इसे लेकर चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल भी उठाए गए। आरोपों के बीच आयोग ने चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया पूरी कर ली। 

कोरोना महामारी के बीच पांच राज्यों में चुनाव से आपने क्या सबक लिए? क्या आप संतुष्ट हैं?

चुनाव से पहले हम सभी संबंधित पक्ष से इनपुट लेते हैं। सभी राजनीतिक दल, गृह, स्वास्थ्य मंत्रालय और यहां तक कि राज्यों के मुख्य सचिवों से बात की जाती है। जनवरी-फरवरी में जब संक्रमण कम था, तब भी हमने 20 अगस्त 2020 की गाइडलाइंस में कोई ढिलाई नहीं बरती।

मतदान केंद्र में लोगों की मौजूदगी पर बंदिशों से लेकर मतदान केंद्रों की संख्या 80 हजार बढ़ाने तक हमने सभी उपाय किए। कोविड नियमों का पालन करते हुए स्वतंत्र, निष्पक्ष और भयमुक्त होकर वोट डाले गए। यही तो आयोग का मकसद था।

प. बंगाल में 8 चरणों में चुनाव जरूरी था?

हालात के कारण प. बंगाल में अधिक चरणों में चुनाव कराने का इतिहास रहा है। 2016 और 2019 में भी 7 चरण में चुनाव हुए। 2021 में आयोग ने दौरा किया तो राजनीतिक दलों ने हर बूथ पर केंद्रीय बलों की मांग की। केंद्रीय गृह सचिव से भी इनपुट मिला। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट पर भी गौर किया गया।

राज्य के गृह सचिव, सभी जिला अधिकारियों, एसपी, आदि से व्यापक विचार-विमर्श के बाद हमने 8 चरण तय किए। लेकिन, मतदान और मतगणना की कुल अवधि कम रखी। 2016 में यह 77 दिन थी जो इस बार घटाकर 66 दिन की गई। इसीका नतीजा है कि शांतिपूर्ण माहौल में 82% मतदान हुआ।

हर चरण के मतदान की अलग से अधिसूचना जारी होती है। अगर आखिरी क्षण में कोई तब्दीली की जाती तो सारी चुनाव प्रक्रिया पटरी से उतर जाती। अगर एक-दो चरणों को मिलाया जाता तो सुरक्षा बलों की तैनाती भी बदलनी पड़ती। लिहाजा, हमने ऐसा नहीं किया। इसके बजाए आयोग ने प्रतिबंध सख्त किए।

इस चुनाव का बड़ा सबक क्या है?

हमें बड़ी पब्लिक रैलियों के बजाए डिजिटल और वर्चुअल प्रचार अभियान को अपनाना होगा। हम इस बारे में राजनीतिक दलों और अन्य पक्षों से विचार-विमर्श करेंगे।

क्या महामारी के दौर में चुनाव कराना बेहद जरूरी था? इससे बचना नहीं चाहिए था?

किसी विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले चुनाव कराना निर्वाचन आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है। जब हमने फरवरी में चुनाव कराने का फैसला किया तो महामारी बहुत कम हो गई थी। चार राज्यों- केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और असम में प्रचार अभियान 4 अप्रैल को खत्म हो गया था और मतदान 6 अप्रैल को हुआ। उस समय दूसरी लहर नहीं आई थी और मतदान कोविड गाइडलाइंस के तहत ही हुआ।

फिर 16 अप्रैल से लहर आने पर चुनाव आयोग ने कई नई बंदिशें लगाईं। 400 से ज्यादा रैलियां रद्द की गईं। कोविड नियमों का उल्लंघन होने के मामले में एफआईआर दर्ज की गईं। ऐसा पहली बार हुआ कि विजय जुलूसों पर प्रतिबंध लगाया गया।

आप अपने कार्यकाल में किन प्रमुख मुद्दों पर ध्यान देना चाहते हैं?

हम वोटर कार्ड की डिलीवरी को चुस्त करना चाहते हैं। एक बड़ा सुधार हम मतदाता सूची को अपडेट करने के बारे में करना चाहते हैं। संविधान में व्यवस्था है कि पहली जनवरी को हर साल चुनाव मतदाता सूची तैयार हो जाए। लेकिन, जो युवा 2 जनवरी या उससे बाद 18 साल के हो रहे हैं, उन्हें मताधिकार के लिए एक साल इंतजार करना पड़ता है। हम चाहते हैं, ऐसा न हो। जब भी कोई 18 साल को जाए जाए तो उसे मताधिकार मिल जाए।

इसके लिए आयोग जनप्रतिनिध कानून 1950 की धारा 14 बी में बदलाव चाहता है। हम मतदाता सूची को आधार डेटा से भी जोड़ना चाहते हैं ताकि कोई मतदाता जब जगह बदले तो वह कई जगह पर पंजीकरण न करा सके।

नतीजों के बाद ईवीएम के बारे में सवाल नहीं उठे, क्या घपले की बहस खत्म हो गई?

हर चुनाव के बाद ईवीएम कसौटी पर खरी साबित हुई है। चुनाव आयोग का दृढ़ मत है कि ईवीएम के साथ छेड़छाड नहीं हो सकती। तकनीकी उपायों और सख्त प्रशासनिक व्यवस्था के बूते पर हम यह बात मजबूती से कह सकते हैं। इन चुनावों में भी ईवीएम पर आयोग का विश्वास बढ़ा है।

एक देश, एक चुनाव की बहस पर आपकी क्या राय है?

1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे। राजनीतिक कारणों से इसमें व्यवधान आ गया। एक साथ चुनाव कराने के लिए राजनीतिक आम सहमति जरूरी है। इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा।

देश से बाहर रहे रहे भारतीयों को वोट का अधिकार देने के बारे में क्या किया जा रहा है?

एनआरआई के मताधिकार का मामला पेचीदा है। आयोग ने 2015 में ही कुछ संशोधनों का प्रस्ताव किया था। फिर 27 नवम्बर, 2020 को आयोग ने कानून मंत्रालय से सम्पर्क किया ताकि इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम की सुविधा दी जा सके। विदेश मंत्रालय भी से भी इस बाबत सम्पर्क किया गया है। इस मुद्दे पर कई मंत्रालयों से विचार-विमर्श की जरूरत है।

फोकस इन 4 बड़े लक्ष्य पर

युवा जब 18 का हो, तो उसे मताधिकार उसी समय मिल जाए, ताकि उसे 1 साल तक इंतजार न करना पड़े।

चुनाव के दौरान रैलियां अधिक से अधिक डिजिटल या वर्चुअल हों।

चुनाव खर्च की सीमा बढ़े और जितने भी जरूरी नए सुधार हों, किए जाएं।

विदेश में रहने वाले भारतीयों को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का अधिकार मिले।