जयपुर गहलोत सरकार ने विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा- प्रदेश में हीनियस क्राइम से जुड़े मुकदमे बेरोकटोक दर्ज किए जाने के कारण SC महिलाओं से दुष्कर्म के झूठे मुकदमे दर्ज करा दिए जाते हैं। इस वजह से SC महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मुकदमो की संख्या में इजाफा हुआ है। सरकार ने नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के बजट सत्र के दौरान लगाए गए सवाल का ​जवाब देते हुए ये आंकड़े दिए हैं।

सरकार के इस जवाब पर दलित अधिकारों के लिए काम कर रहे संगठनों ने सवाल उठाए हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन मुकदमो में सही इंवेस्टिगेशन नहीं होने पर भी सवाल खड़े किए हैं। सरकार ने जवाब में साफ लिखा है कि अनुसूचित जाति SC की महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं में 2018 की तुलना में 2020 में 17.31% की बढ़ोतरी हुई है। सरकार का तर्क है कि प्रदेश में बिना रोक मुकदमे दर्ज करने की वजह से SC महिलाओं से दुष्कर्म के झूठे मुकदमे दर्ज करा दिए जाते हैं, इसलिए इनकी संख्या में इजाफा हुआ है।

SC महिलाओं के साथ दुष्कर्म के 38 फीसदी मामले झूठ पाए गए

गृह विभाग के जवाब के मुताबिक साल 2018 से 2020 तक तीन साल में SC महिलाओं के साथ दुष्कर्म के 1467 मुकदमे दर्ज हुए जिनमें 555 मुकदमे जांच में झूठे पाए गए। इस तरह SC महिलाओं के साथ दुष्कर्म के दर्ज कुल मामलों में से 38 फीसदी मामले झूठे पाए गए। झूठे मुकदमे दर्ज करवाने पर तीन साल के दौरान 28 मामलों में IPC 182 के तहत कार्रवाई के लिए कोर्ट में पुलिस ने इस्तागासे पेश किए हैं। इसके अलावा 825 दुष्कर्म के मामलों में 1153 आरोपियों को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ चालान पेश किया गया। साल 2018 में एससी महिलाओं से दुष्कर्म के 416 मुकदमे दर्ज हुए जिनमें से 161 झूठे पाए गए, 2019 में SC महिलाओं से दुष्कर्म के 563 में से 214 और 2020 में 488 मामलों में से 180 मुकदमे झूठे पाए गए।

SC अत्याचार के 42 फीसदी मामले जांच में झूठे पाए गए

गृह विभाग के जवाब के मुताबिक एससी अत्याचार के 2018 से लेकर 2020 तक की अवधि में 18,426 मुकदमे दर्ज किए गए। इनमें से 7731 मुकदमे झूठे पाए गए जिन पर पुलिस ने FR लगाकर कोर्ट में पेश कर दी है। इस तरह SC अत्याचार के 42 फीसदी मुकदमे जांच में झूठे पाए गए। साल 2018 में एएसी अत्याचार के 4613 मुकदमे दर्ज हुए जिनमें से 1828 जांच में झूठे पाए गए। साल 2019 में 6798 मामलों में से 3009 और साल 2020 में 7015 मामलों में से 2894 मामले जांच में झूठे पाए गए।

भाजपा राज की तुलना मेंं 22 फीसदी बढ़े दुष्कर्म

गृह विभाग के जवाब से यह भी साफ हो रहा है कि भाजपा राज के आखिरी साल 2018 की तुलना में कांग्रेस राज के दौरान 2020 दुष्कर्म, SC अत्याचार और SC महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म के मामले बढ़े हैं।

सरकार का विधानसभा की वेबसाइट पर जवाब

दलित अधिकार कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी बोले- सरकार का तर्क सही नहीं, असलियत अलग है, झूठे मुकदमे करवाने वाले सभी मामलों में कार्रवाई क्यों नहीं की?

दलित ​अधिकारों और मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने सरकार के जवाब पर सवाल उठाए हैं। भंवर मेघवंशी ने भास्कर से कहा, दलित महिलाओं से दुष्कर्म के 38 फीसदी और दलित अत्याचार के मुकदमों के 42 फीसदी झूठे होने का जवाब दिया है तो फिर 182 के तहत कार्रवाई 28 मामलों में ही क्यों हुई? एससी महिलाओं से दुष्कर्म के 555 मामलों को झूठा बताया है, उन सब में कार्रवाई होनी चाहिए थी। जिन मुकदमों को झूठा बताया है उनकी गहराई में जाएंगे तो 70 फीसदी में सामाजिक दबाव से राजीनामे के मिलेंगे । हमारा सामाजिक ढांचा ऐसा है कि दलित मुकदमा तो दर्ज करवा देता है लेकिन सामाजिक दबाव में प्रभावशाली लोग उसे राजीनामे के लिए दबा देते हैंं।

सामाजिक कार्यकर्ता श्रीवास्वत बोलीं- दलित महिलाओं से दुष्कर्म के मामले झूठे नहीं, फेयर पुलिस इंवेस्टिगेशन नहीं होना एफआर लगने का बड़ा कारण

सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने कहा, दुष्कर्म और दलित उत्पीड़न के इतने मामले सामने आ रहे हैं, उन्हें झूठा कहने का पूराना पूर्वाग्रह है। यौन ​हिंसा के मामलों में पीड़ित जब दलित हो तो पूर्वाग्रह और बढ़ जाते हैं, फिर पुलिस इंवेस्टिगेशन नहीं होता है, जांच के दौरान बहुत सी कमियां छोड़ दी जाती है। पीड़िताओं को सहयोग भी नहीं मिल पाता, सामाजिक दबाव, पुलिस का पूर्वाग्रह भी जिम्मेदार है। दुष्कर्म के मामले में एक तरह से पूरी व्यवस्था औरत के खिलाफ हो जाती है, इसलिए ये मामले झूठे नहीं ​होते, यह सिस्टम उन्हें झूठा करार दे देता है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता कमल टाक बोले- सामाजिक दबाव में राजीनामा और गवाह मुकरने से केस को झूठा साबित कर देते हैं

सामाजिक कार्यकर्ता कमल टाक का कहना है कि दलित महिलाओं से दुष्कर्म और दलित अत्याचार की घटनाओं में सामाजिक दबाव की वजह से गवाह मुकर जाते हैं। सामाजिक दबाव की वजह से कई बार शिकायतकर्ता भी दबाव में आकर केस वापस ले लेता है। इन सब कारणों से मुकदमों में एफआार लगती है और उसे झूठा करार दे दिया जाता है। कुछ मुकदमे झूठे हो सकते हैं, लेकिन बारीकी से पड़ताल करोगे तो सामाजिक दबाव, फुसलाहट-प्रलोभन और समझौते की बातें सामने आएंगी। इसका यह मतलब नहीं है कि दलित अत्याचार की घटनाएं नहीं हो रही।