लोकतंत्र समर्थकों को दबाने के लिए ड्रोन और स्पायवेयर का इस्तेमाल; 30 दिन में 25 प्रदर्शनकारी मारे गए

म्यांमार की सेना आंदोलकारियों के खिलाफ घातक हथियारों और सर्विलांस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है।

म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार के तख्तापलट को एक महीना हो चुका है। सेना के दमन के बावजूद लोकतंत्र बहाली की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी पीछे हटने तैयार नहीं हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब तक 25 लोग सेना की फायरिंग में मारे जा चुके हैं। म्यांमार की सेना आंदोलन को दबाने के लिए उस तकनीक का इस्तेमाल कर रही है जो उसने सरहदों को महफूज रखने के लिए हासिल की थी।

चीन की सेना ने हॉन्गकॉन्ग और शिनजियांग में लोकतंत्र समर्थकों की आवाज दबाने के लिए इन्ही जासूसी उपकरणों और घातक हथियारों का इस्तेमाल किया था और अब भी कर रही है।

इजराइली ड्रोन और स्पायवेयर

म्यांमार मिलिट्री इजराइली सर्विलांस ड्रोन, यूरोपियन iPhone क्रेकिंग डिवाइस और अमेरिका में बने उन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रही है, जो हैकिंग में काम आते हैं। इसके अलावा सैटेलाइट और टेलिकम्युनिकेशन अपग्रेडिंग के जरिए भी आंदोलन का दमन किया जा रहा है ताकि देश में जो कत्लेआम हो रहा है, वो दुनिया तक न पहुंच पाए। तकनीक के उपयोग के साथ ही सेना ने क्रूरता की तमाम हदें पार कर ली हैं।

चीन, सऊदी अरब और मैक्सिको भी यही करते आए हैं

टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अवाम की बेहतरी और उनके दमन दोनों में किया जा सकता है। म्यांमार में फिलहाल यहां की सेना वही कर रही है जो चीन, सऊदी अरब या मैक्सिकों की सरकारें पहले से करती आई हैं। प्रदर्शनकारी दुनिया तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे थे। अब सेना इसका इस्तेमाल दमन के लिए कर रही है।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने म्यांमार के दो साल के बजट डॉक्यूमेंट्स की जांच की। इससे लगता है कि आर्मी ने सबसे ज्यादा खर्च सर्विलांस टेक्नोलॉजी हासिल करने पर किया।

इजराइल ने 2018 में म्यांमार को सैन्य सामग्री बेचने पर रोक लगा दी थी। तब वहां सेना पर रोहिंग्या मुस्लिमों के नरसंहार के आरोप लग रहे थे। इसके बावजूद खतरनाक हथियार और सर्विलांस टेक्नोलॉजी यहां की सेना तक पहुंच गए। अब तक ये साफ नहीं हो पाया है कि ये सब किस रास्ते से म्यांमार पहुंचे।