बंगाल की राजनीति  मोदी कोलकाता पहुंचे; विक्टोरिया मेमोरियल में ममता साथ रहीं, लेकिन दोनों में बातचीत नहीं हुई
 


कोलकाता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेशनल लाइब्रेरी का जायजा लेते हुए। कोलकाता में आज उनके दो कार्यक्रम हैं।

आज यानी 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती है। पश्चिम बंगाल में इसी साल अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए राज्य में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोलकाता पहुंचे हैं। यहां उन्होंने नेशनल लाइब्रेरी का दौरा किया। इसके बाद मोदी विक्टोरिया मेमोरियल हॉल पहुंचे, जहां वे नेताजी की स्मृति में सिक्का और डाक टिकट जारी करेंगे। विक्टोरिया मेमोरियल में बंगाल की CM ममता बनर्जी भी प्रधानमंत्री के साथ मौजूद हैं। खास बात यह है कि एक ही कार्यक्रम में मौजूद रहने के बावजूद दोनों के बीच बातचीत नहीं हुई।

कोलकाता में मोदी के कार्यक्रम

नेशनल लाइब्रेरी में नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का जायजा लिया।
विक्टोरिया मेमोरियल हॉल (नेताजी भवन) में आजाद हिंद फौज के सदस्यों का सम्मान करेंगे। यहीं नेताजी पर डाक टिकट और सिक्का जारी होगा।
 

मोदी ममता का साथ क्यों है खास?

विक्टोरिया मेमोरियल के मुख्य कार्यक्रम में उनके साथ मंच पर ममता बनर्जी भी मौजूद रहेंगी। प्रधानमंत्री से पहले उनका भी संबोधन होगा। अब तक राज्य में सांस्कृतिक मोर्चे पर दोनों दलों के कार्यक्रम अलग-अलग होते रहे हैं। आमतौर पर केंद्र के कार्यक्रमों और बैठकों में ममता मौजूद नहीं रही हैं। अपनी पार्टी के मंच से भाजपा को खरी-खोटी सुना चुकीं ममता के सामने इस बार पद की गरिमा के साथ-साथ पार्टी की छवि बचाने की चुनौती है।

मोदी से पहले ममता का शक्ति प्रदर्शन

इधर मोदी के आने से पहले ही बंगाल की CM ममता बनर्जी ने शक्ति प्रदर्शन कर दिया। इधर, दिलचस्प बात ये है कि आज ही मोदी के दोनों कार्यक्रमों में मंच पर ममता भी उनके साथ होंगी। ममता ने कोलकाता को राजधानी बनाने की मांग की। उन्होंने कहा, 'अंग्रेज कोलकाता से ही पूरे देश पर राज करते थे। ऐसे में हमारे देश में एक शहर को ही राजधानी क्यों बनाए रखना चाहिए। देश में चार रोटेटिंग कैपिटल होनी चाहिए।


हम केवल चुनावी साल में नेताजी को याद नहीं करते

ममता ने कहा कि हम नेताजी का जन्मदिन केवल चुनावी साल में नहीं मनाते। नेताजी को वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। हम उनकी 125वीं जयंती बहुत बड़े पैमाने पर मना रहे हैं। रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें देशनायक कहा था, इसलिए हमने आज के दिन को देशनायक दिवस नाम दिया है।

ममता ने पराक्रम दिवस को खारिज किया

केंद्र सरकार ने नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के तौर पर मनाने का ऐलान किया है। लेकिन, ममता बनर्जी ने इसे खारिज करते हुए इस दिन को देशनायक दिवस के तौर पर मनाने की बात कही। ममता ने कोलकाता में श्याम बाजार से रेड रोड तक करीब 8 किमी की पदयात्रा निकाली। इसे दोपहर 12.15 पर शुरू किया गया, क्योंकि 23 जनवरी 1897 को इसी वक्त नेताजी का जन्म हुआ था।

ममता के भाषण की बड़ी बातें

केंद्र सरकार नेताजी के जन्मदिन 23 जनवरी को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करे।
केंद्र सरकार नेताजी के सम्मान की बात करती है, लेकिन उनके सुझाव पर बने योजना आयोग को ही खत्म कर दिया गया।
जब नेताजी ने आजाद हिंद फौज बनाई, तो उसमें गुजरात, बंगाल, तमिलनाडु के लोग भी थे। वे बांटने की राजनीति के खिलाफ थे।
बंगाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस यूनिवर्सिटी और जय हिंद वाहिनी का गठन किया जाएगा।
हम एक आजाद हिंद स्मारक बनाएंगे। हम दिखाएंगे कि इस काम को कैसे किया जाना है। उन्होंने (केंद्र सरकार) मूर्तियों और नए संसद परिसर पर हजारों करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं।
 

मोदी के बंगाल आने के पहले बवाल भी हुआ

प्रधानमंत्री के बंगाल पहुंचने के पहले हावड़ा में बवाल हो गया। भाजपा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि तृणमूल के लोगों ने उन पर हमला किया। स्थानीय भाजपा नेता का कहना है कि हमारे कार्यकर्ताओं पर हमला किया गया। अगर तृणमूल ऐसी राजनीति करना चाहती है तो उन्हें इसी भाषा में जवाब देंगे।


बंगाल की राजनीति में अब दिल्ली का दखल

पश्चिम बंगाल में उत्सव, जनसंस्कृति का हिस्सा है। यहां सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए कोई न कोई मौका ढूंढ़ा जाता है, चाहे टैगोर जयंती हो या विवेकानंद या फिर सुभाषचंद्र बोस का जन्मदिन। इन कार्यक्रम कमेटियों में स्थानीय राजनीति भी फलती-फूलती है, मगर इस बार इस राजनीति का दायरा बढ़कर दिल्ली तक पहुंच गया है। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक फ्रंट पर बंगाली मानुष को लुभाने की होड़ पिछले साल दुर्गा पूजा से ही शुरू हो गई थी। 2021 के शुरू होते ही 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती पर भी दोनों दलों के बीच जलसे-जुलूस को लेकर मुकाबला जैसा हुआ, पर तृणमूल के कार्यक्रमों के आगे भाजपा के आयोजन शायद थोड़े फीके रह गए। यही कसर निकालने के लिए नेताजी की जयंती पर खुद मोदी मैदान में उतर गए हैं।

दोनों नेताओं का लक्ष्य एक ही- बंगालियत से खुद को करीब दिखाना

बंगाल में राज्य के इतिहास और संस्कृति से जुड़े महापुरुषों के प्रति खासा सम्मान रहा है। यहां जनता इसे बंगालियत से जोड़कर देखती है। यहां खेल और कला की शिक्षा हर घर में दी ही जाती है, यही वजह है कि जनता सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सीधे तौर पर जुड़ी होती है। विक्टोरिया मेमोरियल हॉल के मंच पर भी मोदी और ममता दोनों का मकसद इसी बंगालियत से खुद को करीब दिखाना होगा। यह भी तय है कि इसी बंगाली सेंटिमेंट को जीतने वाले का पलड़ा आने वाले विधानसभा चुनाव में भारी होगा।