परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता पाने के लिए भारत की ओर से की जा रही पुरजोर कोशिशों के बीच विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने रविवार (19 जून) को कहा कि चीन एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध नहीं कर रहा है। इस बीच, विदेश सचिव एस जयशंकर चीन का समर्थन हासिल करने की कवायद के तहत 16-17 जून को बीजिंग की अघोषित यात्रा पर गए थे।

सुषमा ने कहा कि चीन 48 देशों के समूह एनएसजी की सदस्यता के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं और मापदंड की बात कर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत को उम्मीद है कि वह समर्थन देने के लिए चीन को मनाने में कामयाब रहेगा। एनएसजी एकमत के सिद्धांत पर काम करता है और यहां तक कि भारत के खिलाफ एक देश का वोट भी इसकी कोशिशों को नाकाम कर सकता है। सुषमा ने यह भी कहा कि भारत इस साल एनएसजी की सदस्यता हासिल करने को लेकर आश्वस्त है।

अपने मंत्रालय की पिछले दो साल की उपलब्धियों का ब्योरा देते हुए विदेश मंत्री ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘चीन एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध नहीं कर रहा है, वह तो सिर्फ प्रक्रियाओं और मानदंड की बात कर रहा है। मुझे उम्मीद है कि हम चीन को समझाने और एनएसजी में हमारे प्रवेश के लिए समर्थन प्राप्त करने में भी कामयाब रहेंगे।’

सुषमा ने कहा, ‘मेरा मानना है कि आम राय कायम करने की कोशिशें जारी हैं और मुझे यकीन है कि भारत इस साल एनएसजी का सदस्य बन जाएगा। भारत की उर्च्च्जा नीति के लिए एनएसजी में प्रवेश निर्णायक है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं खुद 23 देशों के संपर्क में हूं। एक-दो ने चिंता जताई लेकिन मेरा मानना है कि आम राय बनी हुई है।’

सुषमा ने कहा कि भारत की दावेदारी के बाबत शर्तों की बात करने की बजाय इसकी साख पर चर्चा करनी चाहिए। विदेश मंत्री ने कहा कि जहां तक एनएसजी में पाकिस्तान के प्रवेश का सवाल है, भारत उसके प्रवेश और उसकी भूमिका पर टिप्पणी नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, ‘लेकिन हम एनएसजी में किसी देश के प्रवेश का विरोध नहीं करेंगे । हमारा मानना है कि गुणदोष के आधार पर हर देश के आवेदन पर विचार होना चाहिए।’

विदेश सचिव जयशंकर 24 जून को दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में होने वाले एनएसजी के पूर्ण अधिवेशन से एक हफ्ते पहले 16-17 जून बीजिंग की यात्रा पर गए थे। एनएसजी के पूर्ण अधिवेशन में भारत की सदस्यता पर चर्चा होने की संभावना है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास रूवरूप ने कहा, ‘हां, मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि विदेश सचिव अपने चीनी समकक्ष से द्विपक्षीय विचार-विमर्श के लिए 16-17 जून को बीजिंग गए थे। भारत की एनएसजी सदस्यता सहित सभी प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की गई।’

माना जाता है कि चीन एनएसजी में भारत की सदस्यता का पुरजोर विरोध कर रहा है। चीन की दलील है कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए हैं, इसलिए उसे सदस्यता नहीं दी जानी चाहिए। इससे पहले, चीन के आधिकारिक मीडिया ने कहा था कि भारत की एनएसजी सदस्यता से ‘पाकिस्तान की दुखती रग’ को छूने के अलावा ‘चीन के राष्ट्रीय हित खतरे में पड़ेंगे।’ चीनी विदेश मंत्रालय ने एक हफ्ते पहले कहा था कि एनएसजी के सदस्य गैर-एनपीटी देशों के इसमें शामिल होने के मुद्दे पर ‘बंटे हुए हैं’ और इस पर ‘पूर्ण विचार विमर्श’ करने पर बल दिया था। भारत एनएसजी के सदस्य देशों से संपर्क कायम कर इस समूह की सदस्यता पाने के लिए उनका समर्थन जुटाने की कोशिश में है। एनएसजी के सदस्य देशों को परमाणु प्रौद्योगिकी के व्यापार और इसके निर्यात की अनुमति होती है।

अमेरिका ने भारत की दावेदारी का समर्थन करते हुए एनएसजी के विभिन्न सदस्य देशों से कहा है कि वे नई दिल्ली की सदस्यता का समर्थन करें। समझा जाता है कि तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, आयरलैंड और न्यूजीलैंड सहित कई देश एनएसजी में भारत के प्रवेश के पक्ष में नहीं हैं। वर्ष 2008 में एनएसजी की ओर से भारत को दी गई रियायत का जिक्र करते हुए सुषमा ने कहा कि भारत के ट्रैक रिकॉर्ड और साख के आधार पर इसकी सदस्यता का फैसला करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि भारत के एनएसजी सदस्य बनने से काफी फर्क पड़ेगा, क्योंकि यह निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा होगा। विदेश मंत्री ने कहा, ‘मैं आपको बता दूं कि हम पिछले 12 सालों से एनएसजी के संपर्क में हैं और पिछले पांच सालों से एनएसजी में हमारी सदस्यता की बात चल रही है।’ सुषमा ने कहा कि भारत की योजना अपनी 40 फीसदी ऊर्जा जरूरतें गैर-जीवाश्म ईंधन से पूरी करने की है, जिसमें एक-तिहाई परमाणु ऊर्जा होगी। उन्होंने कहा कि एनएसजी की सदस्यता से भारत को अपने परमाणु क्षेत्र में विदेशों से भी ‘तेजी से निवेश’ हासिल करने में मदद मिलेगी।