नई दिल्ली : जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की तुलना भगत सिंह से करने को लेकर आलोचनाओं का सामना करने के कुछ दिन बाद कांग्रेस नेता शशि थरूर ने शुक्रवार को कहा कि इस छात्र नेता ने कभी नहीं कहा कि उन्हें भारतीय होने का गर्व नहीं है।

थरूर ने कहा, ‘आपने जिसके खिलाफ इतनी मजबूती से ऐतराज जताया है वह युवा व्यक्ति खड़ा हुआ और उसने कहा कि मैं जातिवाद.. पूंजीवाद से आजादी चाहता हूं। जरूरी नहीं कि मैं उन चीजों से सहमत हूं जिस बारे में उसने बात की थी। उसने कभी नहीं कहा कि उसे भारतीय होने का गर्व नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘उसने जो कहा वह इसके उलट है, उसने कहा कि उसे भारतीय होने पर इतना गर्व है कि वह इसे एक बेहतर स्थान में तब्दील करना चाहता है। सीमा पर लड़ रहे जवानों को लेकर भी उसे गर्व है।’

सीआईआई द्वारा आयोजित सालाना ‘टेक प्राइड’ में ‘इंडिया शास्त्र: रिफलेक्शन ऑफ आवर टाइम’ पर एक सत्र के दौरान एक सवाल के जवाब में थरूर ने कहा, ‘उसने अपनी मां को कपड़े धोते देखा है, उसके पिता बिस्तर पर पड़े रहने को मजबूर हैं। मुझे यह नहीं बताएं कि उसके परिवार को देश पर गर्व नहीं है।’ उनसे पूछा गया कि यदि मुख्यधारा की मीडिया भारतीय होने पर गर्व महसूस नहीं करने वाले किसी व्यक्ति को बढ़ावा देती है तो भारत अपना ‘सॉफ्ट पावर’ कैसे बढ़ाएगा? थरूर ने मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी पर परोक्ष रूप से तंज कसते हुए कहा, ‘पिछले दशक में अफगानिस्तान में शाम साढ़े आठ बजे कोई भी व्यक्ति किसी अफगान से बात नहीं कर सकता था और फोन नहीं उठाया जाता था क्योंकि उस वक्त ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ का प्रसारण होता था, यह इतना लोकप्रिय कार्यक्रम था।’

देश के प्रथम दलित राष्ट्रपति केआर नारायणन के बारे में एक कहानी साझा करते हुए थरूर ने कहा, ‘एक मेधावी छात्र होने के बावजूद उन्हें उस समारोह में डिग्री नहीं दी गई जिसमें उनकी अगड़ी जातियों के सहपाठियों को यह दी गई थी। यह व्यक्ति भारत के खिलाफ आसानी से तल्ख हो सकते थे लेकिन वह प्रणाली को अंदर रह कर बदलाव करना चाहते थे।’
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थरूर ने पिछले हफ्ते कन्हैया की तुलना भगत सिंह से कर के एक विवाद छेड़ दिया था जिसकी भाजपा ने तीखी आलोचना की है वहीं कांग्रेस ने उनकी इस टिप्पणी से अपनी दूरी बना ली। गौरतलब है कि पिछले साल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ कर उन्होंने अपनी पार्टी से नाराजगी का सामना किया था।

थरूर ने इस बात का जिक्र किया कि भारत को वैश्विक मोर्चे पर ‘हार्ड पावर’ और ‘सॉफ्ट पावर’ के बीच एक संतुलन बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि बड़ी सेना के साथ कोई देश जीतता है बल्कि जो देश बेहतर कहानी बयां करता है वह जीतता है।

उन्होंने कहा कि ‘सॉफ्ट पावर’ :आर्थिक, सांस्कृतिक प्रभाव का इस्तेमाल: एक संपत्ति है लेकिन हमें अपनी अंदरूनी समस्याओं का हल करने की जरूरत है ताकि विश्व में उस शक्ति को कायम रखा जा सके। हमें न सिर्फ जेहादी आतंकवादियों से, बल्कि देश के हमारे करोड़ों लोगों के गरीबी और भूख के रोज..रोज के आतंक से निपटने की भी क्षमता रखनी होगी।

उन्होंने बताया कि उन्होंने भारत को विरोधाभासों की भूमि कहा है और सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि हममें से कुछ लोग भारत को 21वीं सदी की एक महाशक्ति बताते हैं। उन्होंने कहा, ‘जैसा कि हम जानते हैं कि कुछ साल पहले मैं यह कह कर विवाद में घिर गया था कि हम सुपर पुअर (अत्यधिक गरीब) हैं, ऐसे में हम सुपर पावर 'महाशक्ति’ कैसे बन सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि जब हम आबादी, सैन्य क्षमता, आर्थिक वृद्धि की बात करते हैं तब हमारे समक्ष कई चुनौतियां पेश आती हैं। भारत के भविष्य के लिए वास्तव में समाज के निचले पायदान पर मौजूद 25 फीसदी लोग मायने रखते हैं जिन्हें उस सफलता की कहानी से बाहर रख दिया गया है, जिसका हम जश्न मना रहे हैं।