आतंकी हमले की चेतावनी के बीच जनवरी के पहले दो हफ्तों में दिल्ली पुलिस अलर्ट थी. ऐसे कि परिंदा भी पर न मार सके. लेकिन इस दौरान गली-मोहल्ले के अपराधी खुलेआम घूमते रहे. यह बात दिल्ली पुलिस के आंकड़े कह रहे हैं.

1-15 जनवरी तक का क्राइम ग्राफ
अधिकारियों ने बताया कि ज्यादातर पुलिसकर्मी लुटियंस दिल्ली में तैनात थे. 1 से 15 जनवरी तक दिल्ली में चोरी और छीना-झपटी के 427 मामले दर्ज किए गए. जबकि 1 से 15 दिसंबर के बीच ऐसे मामलों की संख्या 394 थी. यानी एक महीने में ही ऐसे अपराध 92 फीसदी बढ़ गए. वहीं 2015 में 1 जनवरी से 15 जनवरी तक ऐसे 348 मामले दर्ज किए गए थे. गाड़ियों और घरों की चोरी में भी ऐसा ही अंतर है.

40 फीसदी स्टाफ से चलाया काम
डीसीपी ने कहा कि पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले के बाद गणतंत्र दिवस पर सुरक्षा के लिए जिलों से स्टाफ लिया गया था. इसलिए लुटियंस दिल्ली को छोड़कर बाकी इलाकों में हर थाने को 40 फीसदी स्टाफ से ही काम चलाना पड़ा. मॉल और बड़े बाजारों में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था, बावजूद इसके उन जगहों पर लोकल अपराधी अपनी करतूतों को अंजाम देने में कामयाब रहे.

यह थी रणनीति
दिल्ली पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने बताया- रणनीति यह थी कि जवानों को ऐसे तैनात किया जाए ताकि राजधानी के मॉल, सड़कों और बाजारों में हर जगह खाकी दिखे. यह रणनीति इसलिए अपनाई गई ताकि आतंकी और उनका साथ देने वाले अपराधी खौफ में रहें.

जांच अधिकारी कम
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि केस तो दर्ज हो रहे हैं, लेकिन उनकी जांच मुश्किल होती जा रही है. क्योंकि जांच अधिकारी बहुत कम हैं. जो हैं भी वे दूसरे काम में व्यस्त हो जाते हैं. कम स्टाफ होने से जांच पर बुरा असर पड़ रहा है.