भोपाल। राजधानी की पुलिस बच्चों के साथ अमानवीय व्यवहार करती है। खासतौर पर पारधी समुदाय के बच्चों के साथ पुलिस का व्यवहार क्रूरता और पूर्वाग्रह से भरा हुआ है। पुलिस बिना किसी सबूत और गवाह के इन बच्चों को चोरी के आरोप में पकड़ लाती है और उन्हें तब तक यातना दी जाती है जब तक वे अपराध कबूल न कर लें। बच्चों को थाने में करंट लगाने, पिन चुभाने और उल्टा लटकाने जैसी यातनाएं दी जाती हैं।

राजधानी में पुलिस के साथ ऐसे बच्चों के साथ किए गए व्यवहार का अध्ययन करने वाले जांच दल के सदस्यों ने गुरुवार को यह बातें एक प्रेसवार्ता में बताईं। भारत ज्ञान विज्ञान समिति की आशा मिश्र ने बताया कि छह लोगों के एक दल ने जुलाई में भोपाल की सात बस्तियों अमन कालोनी, बंजारी बस्ती, एहसान नगर, गांधी नगर, गंगनगर, एमपी नगर व राजीव नगर का दौरा किया।

साथ ही किशोर न्याय से संबंधित संस्थानों का का निरीक्षण भी किया गया। इस दौरान 100 से अधिक व्यक्तियों से बात की गई। जिसके आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है। इस काम में बाल कल्याण समिति की पूर्व अध्यक्ष भारती शर्मा, इंदौर की सामाजिक कार्यकर्ता कल्पना मेहता, सामाजिक शोधकर्ता खुशबू जैन, दिल्ली की वकील माहरुख और बाल अधिकारों पर काम कर रहे प्रशांत दुबे शामिल थे।

तीन दिन के अध्ययन के बाद सदस्यों ने सामूहिक रूप से 40 पेज की एक रिपोर्ट तैयार की है । इस रिपोर्ट के अनुसार भोपाल की पुलिस का रवैया बच्चों के साथ अमानवीय पाया गया। पुलिस की प्रताड़नाएं क्रूर पाई गईं। बच्चों ने बताया कि पुलिस उन्हें डडों से मारती है। बिजली का करंट लगाती है। पिनें चुभाती है। कानों में पत्थर डालकर रगड़ती है। सजा के तौर पर उलटा टांग देती है। यह सिलसिला तब तक चलता है,जब तक चोरी कुबूल नहीं कर ली जाए।

अध्ययन करने वाले सदस्यों में शामिल शिवानी ने बताया कि पुलिस गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर बच्चों को किशोर न्याय बोर्ड के सामने पेश नहीं करती है, जबकि नियमानुसार पुलिस को ऐसा करना जरूरी है। प्रताड़ना के शिकार 70 फीसदी बच्चे पारधी समुदाय के होते हैं। इन संस्थाओं के सदस्यों ने शासन से मांग की है कि वह पादधी व गोंड समुदाय के बच्चों के साथ हो रही इन घटनाओं को स्वीकार करे। दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। राज्य और पुलिस प्रशासन इन वंचित समुदाय के बच्चों के साथ सम्मान का व्यवहार करे।