मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार विकास के तमाम दावे करती रहती है, लेकिन सच्चाई यह है कि बड़े शहरों के सरकारी अस्पतालों में भी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। बीते कुछ दिनों में चर्चा आई खबरें तो यही सच्चाई पेश कर रही हैं -

    अस्‍पताल के बाथरूम में मिली सड़ी हुई लाश: प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल इंदौर स्थित एमवाय अस्पताल के बाथरूम में सड़ी हुई लाश मिली। यह लाश चार दिन से पड़ी थी, लेकिन जिम्मेदार बेखबर थे। जब बदबू से डॉक्टर और मरीज परेशान हुए तो पुलिस को बुलाया गया। पुलिस ने बाथरूम का दरवाजा तोड़ा तो लाश बाहन निकलवाई। इससे पहले सफाईकर्मी बदबू दबाने के लिए लगातार अगरबत्ती जला रहे थे, लेकिन किसी ने बाथरूम का दरवाजा खोलकर देखने की जहमत नहीं उठाई।

    10 घंटे तक एनआईसीयू में पड़ा रहा नवजात का शव: एमवाय अस्पताल में ही लापरवाही का एक और नमूना सामने आया। नवजात का शव साढ़े 10 घंटे तक एनआईसीयू में ही पड़ा रहा।

    ग्‍वालियर के जिला अस्पताल में कन्या भ्रूण हत्या: ग्वालियर जिला अस्पताल के प्रसूति गृह के टॉयलेट में लगभग 6 माह के कन्या भ्रूण मिलने से सनसनी फैल गई। अस्पताल प्रशासन की सफाई है कि कन्या भ्रूण वहां भर्ती महिला का नहीं है। मामला पुलिस को सौंप दिया गया है।

    ऑक्सीजन सिलेंडर बदलने के दौरान मासूम की मौत: ग्वालियर के ही कमलाराजा हॉस्पिटल में ऑक्सीजन सिलेंडर बदले जाने के दौरान डेंगू पीड़ित मासूम की मौत हो गई। परिजनों ने इस मामले में डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए हंगामा कर दिया।

    देहदान के लिए 6 घंटे तक नहीं पहुंची एंबुलेंस: यूं तो इंदौर में देहदान को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, बीते दिनों ग्रीन कॉरिडोर बनाकर ब्रेन डेड मरीज के अंग दो घंटे में दिल्ली भेजे गए, उसी शहर में देहदान करने वाले एक बुजुर्ग समाजसेवी का शव छह घंटे में पांच किमी की दूरी तय कर एमवाय अस्पताल नहीं पहुंच पाया। इसके बाद उनके बच्चों को पिता की मृत्यु को प्रमाणित करवाने के लिए घंटों परेशान होना पड़ा।