भोपाल। केरल का 150 साल पुराना नृत्य। ऐतिहासिक महत्व। इसे प्रस्तुत करने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को प्राप्त है। अधिकतम 60 मिनट के इस नृत्य के लिए 30 किलो वजनी मुखौटा तैयार किया जाता है। वहीं, 24 घंटे पहले से इसकी तैयारी शुरू हो जाती है।

हम बात कर रहे हैं पारंपरिक नृत्य 'पड़यानी" की, जो न केवल देखने में विहंगम लगता है, बल्कि इसका ऐतिहासिक पक्ष भी चौंका देने वाला है। इस नृत्य की प्रस्तुति शुक्रवार को भोपाल हाट में हुई।

मौका था केरल टूरिज्म और केरल संगीत नाटक अकादमी की ओर से आयोजित 'केरल फेस्टिवल" का। यह आयोजन केरल के 60 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में हुआ। तीन दिवसीय महोत्सव में एक ओर जहां कलाप्रेमियों को केरल की सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू होने का मौका मिला।

वहीं, दूसरी ओर उन्होंने केरल के स्वादिष्ट व्यंजन का लुत्फ उठाया। समारोह की शुरुआत शहर की नाट्यश्री संस्था के कलाकारों ने मोहनीअट्टम की प्रस्तुति से की।

फेस्टिवल का शुभारंभ गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने किया। सात मिनट की प्रस्तुति में संस्था की 08 नृत्यांगनाओं ने 'केरलम्-केरलम्..." गीत पर मोहनीअट्टम नृत्य किया। नृत्य के माध्यम से केरल के प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति से दर्शकों को रूबरू कराया। फिर नृत्यांगनाओं ने भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी। इसमें मां दुर्गा का रौद्र रूप दिखाया। इसमें मां दुर्गा महिषासुर का वध करती हैं।

पिछले 25 साल से 'पड़यानी" प्रस्तुत कर रहे कलाकार डी. सुरेश कुमार ने बताया, यह नृत्य उन्होंने नाट्य नृत्य संस्था से सीखा था। सुरेश को हाल ही में केरल संगीत नाटक एकेडमी का बेस्ट परफॉर्मर अवॉर्ड मिला है।

उन्होंने बताया एक घंटे की 'पड़यानी" नृत्य प्रस्तुति में आकर्षण का केंद्र रही वेशभूषा। नृत्य में उपयोग किया जाने वाला मुखौटा प्रस्तुति के 24 घंटे पहले तैयार किया जाता है। 30 किलो वजनी मुखौटे में कैमिकल रंगों का उपयोग नहीं होता। यह प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है।

इसमें काले रंग के लिए कोयला और लाल रंग के लिए लाल मिट्टी व लाल पत्थर का उपयोग होता है। मुखौटे को आकर्षक बनाने के लिए इसमें नारियल और सुपारी के फूल का उपयोग किया जाता है। महोत्सव में केरल के लजीज व्यंजनों के विभिन्न स्टॉल लगाए गए।