नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के 'सबका साथ, सबका विकास' के मंत्र को आगे बढ़ाते हुए समाज के कमजोर वर्ग के लिए कानूनी सहायता सुनिश्चित करने के लिए उसमें 'सबका न्याय' के मंत्र को भी शामिल किया है। पीएम मोदी ने विधिक सेवा दिवस पर कानून के जानकारों को संबोधित करते हुए कहा, 'मैं 'सबका साथ, सबका विकास' में यकीन रखता हूं और इसके साथ 'सबका न्याय' भी जरूरी है।'
 
लोगों को हो कानूनी प्रणालियों की जानकारी
इस अवसर पर मोदी ने कहा कि कानूनी जागरूकता के साथ ही न्यायिक संस्थाओं के बारे में भी जागरूकता बढ़ानी चाहिए। मोदी ने कहा, 'कानूनी जागरूकता के साथ ही न्यायिक संस्थाओं के बारे में भी जागरूकता बढ़ानी चाहिए। लोगों को विधि प्रणालियों की जानकारी होनी चाहिए।'
 
पीएम मोदी ने स्वीकार किया कि खुद उन्हें भी अब तक न्यायपालिका के सभी आयामों की जानकारी नहीं थी। उन्होंने पांच दिसंबर, 1995 को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) की स्थापना के बाद से लोक अदालतों द्वारा साढ़े आठ करोड़ से भी अधिक मामलों के निराकरण की सराहना की। पीएम मोदी ने कहा राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए ये उनके शोध का हिस्सा होनी चाहिए, ताकि वे अपने शिक्षण काल के दौरान ही उनकी कार्यप्रणाली के बारे में समझ सकें।
 
गरीबों को न्याय दिलाए बिना कोई हुकूमत नहीं चल सकती
वहीं कानूनी जागरूकता के प्रसार में एनएएनएसए के योगदान की भूमिका के बारे में न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर ने कहा, 'अगर गरीबों को न्याय नहीं मिलता तो किसी भी समाज, किसी भी प्रणाली या किसी भी हुकूमत का निर्वाह नहीं हो सकता। गरीबों को न्याय संवैधानिक जनादेश को कायम रखता है।' न्यायमूर्ति ठाकुर न्यायमूर्ति एच.एल. दत्तू के स्थान पर तीन दिसंबर को भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद ग्रहण करने जा रहे हैं।
 
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि लोक अदालतों के द्वारा मामलों का निराकरण केवल विवाद से संबंधित दोनों पक्षों के लिए ही फायदे का सौदा नहीं है, बल्कि इसने कई मामलों के भार भी कम कर दिए क्योंकि लोक अदालतों में निपटाए गए मामलों को चुनौती नहीं दी जा सकती।
 
सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति (एससीएलएससी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे ने अदालतों में लंबित मुकदमों कें बढ़ते बोझ की ओर इशारा किया। दवे ने कहा कि न्यायाधीशों की कम संख्या इसके प्रमुख कारणों में से एक है। केंद्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा कि किसी भी अधिवक्ता को वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त करने से पहले और न्याययाधीश के तौर पर नियुक्त करने से पहले मुफ्त कानूनी सेवा में उनके योगदान का आकलन किया जाना चाहिए।