न्यूयार्क। संयुक्त राष्ट्र की 70वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और इसका प्रतिनिधित्व व्यापक करने की जोरदार वकालत करते हुए शुक्रवार को कहा कि इसकी विश्वसनीयता और औचित्य बनाये रखने के लिए ऎसा करना अनिवार्य है। साथ ही उन्होंने विकसित देशों से कहा कि विकास और जलवायु परिवर्तन की अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को वे पूरा करें। मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास सम्मेलन 2015 को संबोधित करते हुए कहा, ""सुरक्षा परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र में सुधार अनिवार्य है ताकि इसकी विश्वसनीयता और औचित्य बना रहे सके। साथ ही व्यापक प्रतिनिधित्व के द्वारा हम अपने उद्देश्यों की प्राप्त अधिक प्रभावी रूप से कर सकेंगे।""

उन्होंने कहा कि साथ ही हम ऎसे विश्व का निर्माण कर सके जहां प्रत्येक जीव मात्र सुरक्षित महसूस कर सके, सभी को अवसर और सम्मान मिले।"" प्रधानमंत्री ने कहा कि 70 साल पहले जब एक भयानक विश्व युद्ध का अंत हुआ था तब इस संगठन के रूप में नई आशा ने जन्म लिया था। आज हम फिर मानवता की नई दिशा तय करने के लिए यहां एकत्रित हुए हैं। ""मैं इस महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन के आयोजन के लिए महासचिव को ह्वदय से बधाई देता हूं।"" मोदी ने कहा कि आज भी जैसा कि हम देख रहे हैं कि दूरी के कारण चुनौतियों से छुटकारा नहीं है। सुदूर देशों में चल रहे संघर्ष और अभाव की छाया से भी वह उठ खडी हो सकती है। समूचा विश्व एक दूसरे से जु़डा है, एक दूसरे पर निर्भर है और एक दूसरे से संबंधित है। इसलिए हमारी अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को भी पूरी मानवता के कल्याण को अपने केंद्र में रखना होगा। जलवायु परिवर्तन के विषय को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा, ""मुझे विश्वास है कि विकसित देश विकास और जलवायु परिवर्तन के विषयों पर अलग अलग मदों में अपनी वित्तीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करेंगे।""

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरूआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इस विचार से शुरू की, ""आधुनिक महानायक महात्मा गांधी ने कहा था कि हम सब उस भावी विश्व के लिए भी चिंता करें जिसे हम नहीं देख पाएंगे।"" साथ ही उन्होंने जनसंघ के चिंतक और भाजपा की विचारधारा के जनक माने जाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जिR करते हुए कहा कि "भारत के महान विचारक" के विचारों का केंद्र अंत्योदय रहा और संयुक्त राष्ट्र का एजेंडा 2030 में भी अंत्योदय की महक आती है। प्रधानमंत्री ने कहा, ""आज 70 वर्ष की आयु वाले संयुक्त राष्ट्र में हम सबसे अपेक्षा है कि हम अपने विवेक, अनुभव, उदारता, सह्वदयता, कौशल एवं तकनीकी के माध्यम से सभी चुनौतियों पर विजय प्राप्त कर सके।"" उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि हम सब गरीबी से मुक्त विश्व का सपना देख रहे हैं। हमारे निर्धारित लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन सबसे उपर है क्योंकि आज दुनिया में 1.3 अरब लोग गरीबी की दयनीय जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे सामने प्रश्न केवल यह नहीं है कि गरीबों को आवश्यक्ताओं को कैसे पूरा किया जाए, और न ही यह केवल गरीबों के अस्तित्व और सम्मान तक ही सीमित प्रश्न है। साथ ही यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी मात्र है, ऎसा मानने का भी प्रश्न नहीं है। अगर हम सबका साझा संकल्प है कि विश्व शांतिपूर्ण हो, व्यवस्था न्यायपूर्ण हो और विकास सतत हो, तो गरीबी के रहते यह कभी भी संभव नहीं होगा। इसलिए गरीबी को मिटाना यह हम सबका परम दायित्व है।

जलवायु परिवर्तन पर उन्होंने कहा, ""अगर हम जलवायु परिवर्तन की चिंता करते हैं तो कहीं न कहीं हमारे निजी सुख को सुरक्षित करने की बू आती है, लेकिन यदि हम जलवायु न्याय की बात करते हैं तो गरीबों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रखने का एक संवेदनशीन संकल्प उभर कर सामने आता है।"" उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में उन समाधानों पर बल देने की आवश्यकता है जिनसे हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो सके। हमें एक वैश्विक जनभागीदार का निर्माण करना होगा जिसके बल पर प्रौद्योगिकी नवोन्मेष और वित्त का उपयोग करते हुए हम स्वच्छ और नवीकरणीय उर्जा को सर्व सुलभ बना सके। प्रधानमंत्री के अनुसार, हम भारत के लोगों के लिए ये संतोष का विषय है कि भारत ने विकास का जो मार्ग चुना है, उसके और संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित सतत विकास लक्ष्यों के बीच बहुत सारी समानताएं हैं। उन्होंने कहा कि भारत आजाद हुआ तब से गरीबी से मुक्ति पाने का सपना हम सबने संजोया है। हमने गरीबों को सशक्त बनाकर गरीबी को पराजीत करने का मार्ग चुना है। शिक्षा एवं कौशल विकास की हमारी प्राथमिकताएं हैं। गरीब को शिक्षा मिले और उसके हाथ में हुनर हो, यह हमारा प्रयास है। गरीबी के बारे में उन्होंने कहा कि इसे मिटाना हम सबकी सबसे ब़डी जिम्मेदारी होनी चाहिए क्योंकि ऎसा किए बिना विश्व शांति, न्यायोचित व्यवस्था और सतत विकास संभव नहीं हो सकता।

पीएम मोदी ने कहा कि समृद्धि की ओर जाने का हमारा मार्ग सतत हो, इसके लिए हम कटिबद्ध हैं और इस कटिबद्धता का मूल निश्चित रूप से हमारी परंपरा और संस्कृति से जु़डा होना है, लेकिन साथ ही यह भविष्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दिखाती है। उन्होंने कहा, ""मैं उस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता हूं जहां धरती को मां कहते और मानते हैं। हमारे वेद उद्घोष करते हैं, "ये धरती हमारी माता है और हम सब इसके पुत्र हैं।" संयुक्त राष्ट्र के मंच से उन्होंने अपनी सरकार की कुछ महत्वाकांक्षी और उद्देश्यपूर्ण योजनाओं को गिनाया जिनमें अगले सात वर्ष में 175 गिगावाट नवीकरणीय उर्जा की क्षमता विकसित करना, ब़डी मात्रा में वृक्षारोपण करना, कोयले पर विशेष कर लगाना, शहरों एवं नदियों की सफाई करना, कचरे को संसाधन में बदला शामिल है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने निर्धारित समयसीमा में वित्तीय समावेशिता पर मिशनमोड में काम करते हुए गरीबों के 18 करोड नए खाते खोले और इसे गरीबों का सबसे बडा सशक्तिकरण पहल बताया। उन्होंने कहा कि भारत में बहुत कम लोगों के पास पेंशन की सुविधा है और इसलिए गरीबों तक पेंशन की सुविधा पहुंचाने के लिए पेंशन योजनाओं के विस्तार का काम भी किया गया है। उन्होंने दावा किया कि आज गरीब से गरीब व्यक्ति में गरीबी के खिलाफ लडाई लडने की उमंग जगी है और नागरिकों के मन में सपने सच होने का विश्वास पैदा हुआ है।