जबलपुर ।   औषधीय पौधे के गुण को तलाशना और पर्यावरण संरक्षण करना। इन दोनों ही बातों का ख्याल रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने अपने शोध में रखा। औषधीय गुणों से भरपूर श्योनाक अंग्रेजी नाम (ओरोजायलम पेड़) पर रिसर्च की। इसमें शामिल तत्व शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ कई जीवाणुओं को खत्म करते हैं। इसके अंदर कैंसर को खत्म करने वाले तत्व हैं। विज्ञानियों ने पेड़ में मौजूद औषधीय गुणों का निचोड़ इस पेड़ के एक पत्ते में निकाल डाला। पत्ती से उतनी ही असरकारक दवा तैयार कर डाली। इस खोज के बाद पत्ते के टिशु कल्चर की मदद से वही गुण हासिल किए। इस सफलता पर पेटेंट हासिल करने के लिए विश्वविद्यालय के शोध विज्ञानियों को एक दशक का वक्त लग गया। रानीदुर्गावती विश्वविद्यालय के बायोसाइंस विभाग और डिजाइन इनोवेशन सेंटर के निदेशक के प्रो.एसएस संधु ने बताया कि श्योनाक के पेड़ की पत्ती,जड़, तना, फल यहां तक कि छाल तक औषधि से भरपूर होती है। इसके गुणों को जानकर लोग पूरा पेड़ ही काटकर घर ले जाते हैं जिस वजह से इसकी संख्या कम हो रही है। ऐसे में विज्ञानियों ने पत्ती से उसी औषधीय गुणों को टिशु कल्चर की मदद से तैयार किया है। इससे कुछ पत्तियों से ही असरदार औषधि बनाई जा सकती है। बड़ी मात्रा में पेड़ काटने की आवश्यकता नहीं होगी। इस शोध में बायोसाइंस विभाग के प्रो.बाय के बंसल, डा.ममता गोयले और प्रो.एसएस संधु पेटेंट एडवाइजर के रूप में शामिल हुए। प्रो.संधु ने बताया कि 27 जून 2012 को मुबंई पेटेंस आफिस में पेटेंट के लिए आवेदन दिया गया था। इससे पहले 2010 से पेटेंट के लिए तैयारी शुरू कर दी गई थी। लंबी प्रक्रिया के बाद 06 जून 2022 को पेटेंट मिला। यह पेटेंट दो दशक तक के लिए हुआ है। उन्होंने कहा कि पत्ती के जरिए ओरोजायलम बनाने की तकनीक से काफी पेड़ बचाए जा सकते हैं। डिजाइन इनोवेशन सेंटर के डायरेक्टर प्रोफेसर सरदूल सिंह संधु ने बताया कि आज से 12 साल पहले बायक्लीन विधि का पेटेंट कराने का काम शुरू हुआ था, जबकि शोध कार्य साल 2006 से हो रहा था। 2010 से पेटेंट लिए तैयारियां और पेपर वर्क किया गया। जिसके बाद 2012 में आवेदन किया गया। प्रो.संधु ने बताया कि बायक्लीन विधि के जरिए औषधीय पेड़ों को भी सालों साल जीवित रखा जा सकेगा और उन्हें काटने की भी जरूरत नहीं होगी।