इंदौर। शहर के विकास का खाका खींचते समय योजनाकारों ने आधुनिक विकास पर तो जोर दिया, लेकिन प्रकृति के हिसाब से शहर को समझने में चूक गए। इसी का नतीजा पिछले दिनों शहर में आई बाढ़ ने दिखाया। 250 करोड़ रुपए का बीआरटीएस हो या शहर की पॉश कॉलोनियां हर जगह जलजमाव ने इस भूल का एहसास कराया। आखिर ऐसा क्यों हुआ, इसकी पड़ताल 'नईदुनिया' ने की।

शहर की पुरानी विकास योजनाओं में जो हिस्से नदियों के लिए तय थे, वे अब गायब हैं। उन जगहों पर अब सड़कें और कॉलोनियां नजर आती हैं। 150 साल के विकास में छह नदियां शहर से विलुप्त हो गईं और जो 13 नदियां जिंदा हैं, उनका अस्तित्व खतरे में है। यह शहर में बाढ़ आने की बड़ी वजह है। इंदौर अब कुछ घंटों में सात या आठ इंच बारिश झेलने के काबिल भी नहीं है जो भविष्य के लिए खतरनाक संकेत हैं।

मालवा के पठार पर बसे इंदौर की भौगोलिक स्थिति कटोरेनुमा है। बायपास, खंडवा रोड क्षेत्र का पानी बहकर नर्मदा बेसिन में जाता है। शहर के मध्य व पश्चिमी हिस्से का पानी खान-सरस्वती-शिप्रा से होते हुए यमुना बेसिन में समाता है। होलकर शासनकाल में शहर के सुनियोजित विकास की जिम्मेदारी सर पैट्रिक गीडिज को दी गई थी। 1918 में उन्होंने इंदौर का पहला मास्टर प्लान तैयार किया। उसमें शहर की नदियों को बरकरार रखने पर जोर दिया गया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

ये नदियां हो गईं विलुप्त

गीडिज के मास्टर प्लान में जिन चार नदियों का उल्लेख हैं, वे आज अस्तित्व में नहीं हैं। उन नदियों के बहाव क्षेत्र का जिक्र भी आज चौंकाता है। वहां अब सड़कें, इमारतें, बस्तियां या कॉलोनियां हैं, लेकिन बारिश के दौरान बहने वाला पानी ये बाधाएं नहीं देखता। उन्हीं क्षेत्रों में बहता है, जहां पहले कभी नदियां बहती थीं। इसे ही हम जलजमाव मानकर कोसते हैं। ऐसी पांच नदियों की जानकारी 'नईदुनिया" ने जुटाई है...

- अन्न्पूर्णा तालाब, सुदामा नगर, उषा नगर से होकर सालों पहले एक छोटी नदी बहती थी। कालांतर में वह खत्म हो गई, लेकिन जब तेज बारिश होती है तो आज भी सुदामा नगर-उषा नगर के मकानों में दो से तीन फीट तक पानी भर जाता है।

- दूसरी नदी सुखनिवास, हवा बंगला, फूटी कोठी मेन रोड से होकर रणजीत हनुमान तक आती थी। अब यह कुछ इलाकों में नाले का रूप ले चुकी है। कुछ हिस्सा सीमेंट-कंक्रीट से ढंक गया है।

- शहर के एक इलाके का नाम खातीवाला टैंक इसलिए रखा गया, क्योंकि यहां तालाब था। इस क्षेत्र से भी माणिकबाग रोड, मोती तबेला, चंद्रप्रभाष शेखर नगर तक ढलान के हिसाब से एक नदी बहती थी जो अब बस्तियों में गुम हो गई है।

- होलकर कॉलेज, विद्या नगर, जानकी नगर, सिंधी कॉलोनी, जूनी इंदौर, कटकटपुरा इलाके में भी एक छोटी नदी का बहाव क्षेत्र था, जो अब विलुप्त हो चुका है।

- अब हमें धेनु मार्केट, वल्लभ नगर, पार्क रोड, शास्त्री मार्केट, एमटीएच कंपाउंड, छोगालाल उस्ताद मार्ग पर तेज बारिश होने पर जलजमाव देखने को मिलता है। आश्चर्य की बात है कि इस क्षेत्र से भी नदी बहती थी जो खातीपुरा-रानीपुरा में जाकर खान नदी में मिलती थी।

जो जिंदा हैं, उनको तो संभालो

- मुंडी तालाब से लेकर बिजलपुर की ओर आने वाली नदी कॉलोनियों के कारण खतरे में है। यहां पुराने स्टॉप डैम और नदी में बहकर आने वाले गोल पत्थर अपनी मौजूदगी का एहसास कराते हैं, लेकिन अब नदी के रास्ते में बसाहट शुरू हो गई है। कच्ची सड़क बनी है। इससे नदी का मार्ग बदल गया है और अब नदी काफी संकरी दिखती है।

- मुंडी तालाब से बिलावली तालाब में मिलने वाले एक चैनल पर भी धीरे-धीरे अतिक्रमण हो रहे हैं। यहां होलकर कालीन स्टॉप डैम आज भी मौजूद है, लेकिन उसके आगे एक टाउनशिप को जोड़ने के लिए बिजलपुर क्षेत्र में ब्रिज बन गया है। पिछले दिनों हुई तेज बारिश में इस चैनल का प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध हो गया था और पानी खेतों को तबाह करते हुए घरों में घुस गया।

- माणिकबाग रोड से क्रॉस होने वाली नदी की चौड़ाई कहीं पर्याप्त है, तो कहीं यह नाले के रूप में दिखती है। जाहिर है बड़े पाट के बाद एकाएक छोटे पाट में जाने के बाद बरसाती पानी रहवासी क्षेत्रों में फैलता है और जलजमाव होता है। चोइथराम ब्रिज बनने के बाद इसका मलबा पास ही पटक दिया गया। अब उसे समतल कर एक बड़े प्लॉट की शक्ल दी जा रही है। इसके लिए नदी का बहाव भी मोड़ा गया है।

- खान और सरस्वती नदी पर भी नगर निगम ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनाने की प्लानिंग की है। 14 किलोमीटर लंबाई में नदी के दोनों तरफ सड़क बनाई जाना है, लेकिन यदि नदी की गहराई नहीं बढ़ाई गई और किनारों का स्वरूप छोटा किया गया तो भविष्य में तेज बारिश के समय स्थिति भयावह हो जाएगी।

- खान नदी शुद्धिकरण प्रोजेक्ट में खान नदी के दोनों तरफ सीवरेज लाइन बिछाई जाएगी। इस प्रोजेक्ट में छह नालों को भी शामिल किया गया है। देवगुराड़िया से कृष्णपुरा, राऊ से एमआर-10, खजराना से कबीटखेड़ी, संवाद नगर नाला, सिरपुर से पंचकुइया, संगम नगर से मरीमाता तक भी सीवरेज लाइन बिछाई जाएगी, लेकिन इन नालों के अतिक्रमणों पर विभागों का ध्यान नहीं है। हर बार तेज बारिश के समय इन नालों के आसपास के इलाके जलमग्न हो जाते हैं।