भोपाल। व्यापमं प्रकरण में राज्यपाल और उनके परिजनों की भूमिका पर कार्रवाई शुरू करने का साहस दिखाने के बाद एसआईटी और एसटीएफ के तेवर अब ढीले पड़ने लगे हैं। राज्यपाल व उनके पुत्र पर एफआईआर दर्ज करने के लिए हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली एसआईटी अब राज्यपाल की कथित संलिप्तता को लेकर अदालत में अपील आदि और जांच आगे बढ़ाने के मामले में मौन हो गई है। जानकारों का मानना है कि हाइकोर्ट द्वारा राज्यपाल के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने के बाद इस मामले को छूने से गुरेज किया जा रहा है।

गौरतलब है कि राज्यपाल रामनरेश यादव व उनके पुत्र शैलेष व कमलेश के खिलाफ एसटीएफ ने तीन महीने पहले प्रकरण कायम किया था, वहीं राज्यपाल के ओएसडी धनराज यादव इसी प्रकरण के चलते जेल में हैं। सूत्रों का कहना है कि हाइकोर्ट में राज्यपाल यादव की याचिका पर एफआईआर निरस्त करने का फैसला आने और उनके पुत्र शैलेष की लखनऊ में संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के बाद एसटीएफ का 'फोकस" बदल गया है। इसे कतिपय दबाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है, जबकि एसआईटी ने ही हाइकोर्ट को बंद लिफाफा सौंपकर व्यापमं में यादव समेत अन्य लोगों के खिलाफ प्रमाण का दावा किया था।

माना जा रहा है कि यादव के प्रति सरकार की 'सहानुभूति" भी इस गतिरोध की वजह बन रही है। खास बात यह है कि हाइकोर्ट के आदेश में एफआईआर निरस्त करने की बात तो थी, लेकिन जांच से मना नहीं किया गया था। फिलहाल महामहिम से बयान लेने, पुनर्विचार याचिका दायर करने या सुप्रीम कोर्ट में अपील करने से परहेज किया जा रहा है। एसटीएफ के कामकाज पर नजर रखने के लिए गठित एसआईटी की ओर से भी इस संबंध्ा में निर्देश नहीं दिए गए हैं। एसआईटी के अध्यक्ष जस्टिस चंद्रेष भूषण का कहना है कि राज्यपाल यादव के प्रकरण में कार्रवाई करने और अपील करने या नहीं करने का निर्णय एसआईटी का नहीं बल्कि एसटीएफ का होगा, क्योंकि जांच एजेंसी वही है।

यह बहुत आश्चर्यजनक मामला है। हाइकोर्ट ने राज्यपाल की गिरफ्तारी के लिए मना किया है,लेकिन जांच जारी रखने से नहीं रोका है। किसी एडीजी स्तर के अफसर को राज्यपाल से बयान लेना चाहिए थे, लेकिन पूरे प्रकरण में भारी दबाव नजर आ रहा है। एसआईटी पहल करके एफआईआर निरस्त करने के निर्णय को पुनर्विचार याचिका द्वारा चुनौती दे सकती है।
जेपी धनोपिया, वरिष्ठ अधिवक्‍ता व कांग्रेस प्रवक्ता