जम्मू: जम्मू कश्मीर अंग्रेजों का गुलाम नहीं रहा। इस बात का स्वयं इतिहास साक्षी है। जम्मू कश्मीर को भारत के सिर का ताज ज्यों ही नहीं कहा जाता है। इसमें विशेषता है। सबसे बड़ी विशेषता यही है कि राज्य कभी गुलाम नहीं रहा।

खूबसूरत वादियों, चिनाब के प्रेम की धाराओं, मन्दिरों के शहर, मुग्लकालीन शासन की सुन्दरता, डोगरों की बहादुरी और बर्फीली चोटियों से संपन्न जम्मू कश्मीर महाराजा गुलाब सिंह की संपत्ति थी।

आंग्रेजों से खरीदा था कश्मीर

महाराजा गुलाब सिंह ने आंग्रेजों से कश्मीर 75 लाखरु पयों में खरीदा था। 16 मार्च 1846 में महाराजा गुलाब सिंह और ब्रिटिश शासकों के बीच अमृतसर में एक संधि हुई जिसमें अंग्रेजों ने पूरे 75 लाख नानकशाही रु पए लेकर कश्मीर को राजा गुलाब सिंह को सौंप दिया।

इसके राजा गुलाब सिंह राजा से महाराजा गुलाब सिंह हो गए। लार्ड हारडिंग ने इस बात का कारण भी बताया। उन्होंने लिखा, कश्मीर को लेकर ऐसा करना आवश्यक था। सिखों को कश्मीर में बढऩे से रोकने के लिए हमने उसे गुलाब सिंह को बेच दिया।

चीन को करारी हार

तिबतियों ने चीन के साथ मिलकर लद्दाख पर हमला कर दिया। डोगरा शासकों के साथ चुशुल में उनका भयंका युद्ध भी हुआ और चीन को महाराजा के जांबाज सैनिकों ने करारी हार दी। तिब्बत और लद्दाख की सीमा को चुशुल संधि के तहत निर्धारित किया गया लेकिन 1950 में चीन के कम्यूनिस्टों ने संधि का उल्लंघन किया। जो आज भी जारी है।