नई दिल्ली|प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को 71 साल के हो गए। इस मौके पर उनकी जिंदगी से जुड़ी हम तीन कहानियां लेकर आए हैं, जो शायद ही किसी को पता हों। पहली कहानी प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके रोज के खर्च से जुड़ी है। दूसरी- महज एक कॉल की दूरी पर रहने वाले उनके निजी स्टाफ के बारे में, जबकि तीसरी कहानी PM के आधिकारिक आवास पर उनसे मिलने आए परिवार के सदस्यों की है।
1. PMO बजट देता है, मोदी नहीं लेते, अपनी सैलेरी से खरीदते हैं जरूरत की चीजें
मोदी का रोज का खर्च कितना है, इसका बजट कहां से आता है? इसका जवाब प्रधानमंत्री आवास और प्रधानमंत्री ऑफिस यानी PMO से नहीं मिला, लेकिन एक उच्च पदस्थ सूत्र ने हमें इतना जरूर बताया कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी निजी जरूरत की एक भी चीज के लिए PMO से मिलने वाले फंड का इस्तेमाल नहीं करते।
PMO के इस फंड में प्रधानमंत्री की रोजमर्रा की जरूरतों की हर चीज का इंतजाम रहता है। ऐसी ही व्यवस्था उनके परिवार के सदस्यों के लिए रहती है, लेकिन PM मोदी अपनी सैलेरी से ही ये सारा खर्च उठाते हैं।
2. जरूरत की चीजों के रख-रखाव के लिए महीने में 2 बार निजी स्टाफ आता है
ये तो साफ हो गया कि मोदी खर्च खुद उठाते हैं, पर ये व्यवस्थाएं कौन करता है? सूत्र ने बताया कि महीने में दो बार मोदी का एक भरोसेमंद निजी स्टाफ आता है। मोदी इस स्टाफ को भी अपनी सैलेरी से पैसा देते हैं।
हालांकि, मोदी का ये विश्वसनीय स्टाफ कौन है? इसका जवाब भी नहीं मिला। सिर्फ इतना बताया गया कि विश्वसनीय स्टाफ तब से मोदी के साथ है, जब से वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अब भी ये स्टाफ मोदी से बस एक फोन कॉल की दूरी पर ही रहता है।
3. PM आवास पर सिर्फ एक बार मां मिलने आई थीं और परिवार का कोई सदस्य नहीं
मोदी से प्रधानमंत्री आवास पर सिर्फ उनकी मां हीराबेन मिलने आई हैं, वह भी सिर्फ एक बार। मोदी ने खुद ही उस दौरान का वीडियो ट्वीट किया था। इसमें वे मां को व्हीलचेयर पर प्रधानमंत्री आवास की सैर कराते नजर आए थे।
परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों को अपने सरकारी आवास पर मिलने आने से मना करने और सरकारी फायदों को अस्वीकार करने की शुरुआत सरदार वल्लभ भाई पटेल ने की थी। वे देश के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, साथ ही ऐसे पहले व्यक्ति भी जिन्होंने सरकारी खर्चे पर निजी काम करने से मना कर दिया था। उन्होंने तो अपने रिश्तेदारों से यहां तक कह दिया था कि जब तक वे दिल्ली में हैं, तब तक कोई दिल्ली के आसपास भी न आए।