चित्तौड़गढ़| करोड़ों रुपयों, सोने-चांदी और अनूठा चढ़ावा पाने वाले वाले सांवलिया सेठ शुक्रवार को जलझूलनी एकादशी पर भक्तों को दूर से ही दर्शन देंगे। अपने कमिटमेंट पर खरे उतरने वाले भक्त और भगवान के बीच की कड़ी जलझूलनी एकादशी पर होने वाले मेले पर ही जुड़ती है, लेकिन कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए सांवलिया सेठ के सबसे बड़े उत्सव पर भक्तों को प्रवेश नहीं मिलेगा।
इस खास मौके पर सभी भक्तों को उत्तर भारत के सबसे ज्यादा चढ़ावे वाले मंदिर के 360 डिग्री एंगल से दर्शन करा रहा है। यानी कोरोना में रोक के बावजूद आप सांवलिया सेठ मंदिर के विराट दर्शन कर पाएंगे। देश के कोने-कोने से आने वाले लाखों भक्तों की सांवलिया सेठ के प्रति अटूट श्रद्धा है।
भक्त अपने बिजनेस या वेतन की कमाई का एक बड़ा हिस्सेदार या पार्टनर सांवलिया सेठ को अवश्य बनाते हैं। इसी पार्टनरशिप का कमिटमेंट वे हर माह यहां आकर सांवलिया सेठ के हिस्से को दान कर पूरा करते हैं।
कोरोना का खतरा फिलहाल बरकरार है। यही कारण है कि जलझूलनी एकादशी पर मंदिर में भक्तों का प्रवेश निषेध है। मंदिर को उसी भव्य स्वरूप में सजाया गया है, जिस प्रकार हर साल मेले के दौरान सजाया जाता है। यह परंपरा सालों से चली आ रही है।
मान्यता है कि वट वृक्ष के नीचे से मिले थे सांवलिया सेठ
बताया जाता है कि मंडफिया में रहने वाला एक ग्वाला भोलाराम गुर्जर रोज बागुण्ड तक गाय चराने जाता था। एक दिन उसे सपना आया कि वट के वृक्ष के नीचे सांवलिया सेठ की मूर्ति है। पहले तो ग्वाले ने ध्यान नहीं दिया। फिर दुबारा सपना आने पर उसने अपने हाथों से खुदाई की। वहां चार मूर्ति निकली। एक खंडित थी, जिसे वहीं रखा गया। इसके अलावा एक मूर्ति को स्थापित कर दिया गया।यह वही स्थान है, जिसे मंदिर का प्राकट्य स्थल कहा जाता है। एक मूर्ति भदसोडा गांव में स्थापित की गई। चौथी मूर्ति को भोलाराम मंडफिया लेकर आया और अपने घर के परिण्डे में स्थापित कर पूजा पाठ शुरू कर दी। धीरे-धीरे तीनों स्थानों पर मंदिरों और खासतौर पर मंडफिया में उसके घर वाले मंदिर की ख्याति तेजी से फैलने लगी। उसी प्रसिद्धि का परिणाम आज दिखाई देता है।
सांवलिया सेठ को बिजनेस में 20% तक पार्टनर बनाते हैं भक्त, जलझूलनी एकादशी पर मेले में इस साल दूर से होंगे दर्शन
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