
करीब 50 साल बाद केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने ऐतिहासिक शहर बुरहानपुर में स्थित बिल्किस जहां जिन्हें बेगम शुजा कहा जाता था, के मकबरा का दरवाजा खोलने की अनुमति प्रदान की। 1970 में यह ऐतिहासिक धरोहर जर्जर होने पर केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने इसका दरवाजा बंद करा दिया था। देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को पास ही स्थित कब्रिस्तान के रास्ते से मकबरे तक पहुंचना पड़ता था। लेकिन अब पुरातत्व विभाग इसका कायाकल्प करेगा। साथ ही मेरा बुरहानपुर मेरी विरासत ग्रुप की ओर से सालों से इस मकबरे का दरवाजा खोलने की मांग की जा रही थी। जिसके बाद केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने इसकी अनुमति दी।
यह है बिल्किस जहां का इतिहास
बिल्किस जहां जिसे बेगम शुजा भी कहते थे। शाहजहां के पुत्र शाह शुजा की पत्नी थी। इनका जन्म 1616 ईस्वी में अजमेर में हुआ था। देहांत 1632 ईस्वी में बुरहानपुर में हुआ। उन्हीं के लिए यह मकबरा उन्हीं की समाधि पर बनाया गया था, जो कि एक राष्ट्रीय स्मारक है। इस मकबरे का स्थापत्य शैली ईरानी है। इसे खरबूजे की डिजाइन में बनाया गया है। इसलिए इसे खरबूजा गुम्बद भी कहते हैं। मकबरे में बहुत ही शानदार रंगीन नक्काशी है। इस मकबरे का मुख्य द्वार पिछले 50 साल से बंद था। जिसे 25 जून 2021 को इतिहासकार कमरुद्दीन फलक और मोहम्मद नौशाद के प्रयासों से खोल दिया गया है। अब मुख्य द्वार के सामने ग्राम पंचायत आजाद नगर ऐमागिर्द द्वारा रोड निर्माण कार्य प्रारंभ किया जाएगा और रोड के दोनों तरफ गार्डन बनाया जाएगा। मकबरे के मुख्य द्वार के खुल जाने से इतिहास प्रेमियों, पर्यटकों को मकबरे तक पहुंचने में बहुत आसानी हो जाएगी। मुख्य द्वार खुलवाने में कलेक्टर प्रवीण सिंह और एडीएम शैलेंद्र सोलंकी ने भी प्रयास किए। जिसके बाद पुरातत्व विभाग ने अनुमति दी।
पूरा बचपन बंद दरवाजा देखकर ही गुजरा
हमारा पूरा बचपन बंद दरवाजा देखकर ही गुजरा है। मकबरा क्षतिग्रस्त होने और लोगों के छत बैठने के चलते इसे बंद किया गया था। कभी इसकी रिपेयरिंग का काम भी नहीं हुआ। हमारे द्वारा प्रयास किए जाने के बाद केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने इसे खुलवाया।
मोहम्मद नौशाद, इतिहासकार
अनोखी है मकबरे की बनावट
मकबरे की बनावट बहुत ही अनोखी है। देखने में यह खरबूजे जैसा नजर आता है। इसलिए इसे खरबूजा गुंबद भी कहते हैं। इसकी डिजाइन ज्यामेटिकल अंदाज में है। बिल्किस जहां को फलावर पाॅट कलेक्शन का शौक था। उनकी मौत के बाद यह मकबरा बना तो यहां पांच-पांच फीट के फ्लावर तक नक्काशी कर बनाए गए। कहीं भी ब्रश नहीं चला।