अहमदाबाद : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विभाजनकारी विचारों को दिमाग से हटाने पर जोर देते हुए मंगलवार को कहा कि भारत की असल गंदगी गलियों में नहीं, बल्कि ‘हमारे दिमाग में और उनके एवं हमारे बीच समाज को विभाजित करने वाले विचारों को दूर करने की अनिच्छा में है।’

मुखर्जी ने यहां साबरमती आश्रम में आयोजित एक समारोह में भारत के बारे में महात्मा गांधी की सोच का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने एक समावेशी राष्ट्र की कल्पना की थी जहां देश का हर वर्ग समानता के साथ रहे और उसे समान अधिकार मिलें। उन्होंने कहा कि मानव होने का मूल ‘एक दूसरे पर हमारे भरोसे’ में है। उन्होंने कहा कि हर दिन, हम अपने चारों ओर अभूतपूर्व हिंसा होते देखते हैं। इस हिंसा के मूल में अंधेरा, डर और अविश्वास है। जब हम इस फैलती हिंसा से निपटने के नए तरीके खोजें, तो हमें अहिंसा, संवाद और तर्क की शक्ति को भूलना नहीं चाहिए।

प्रणब दादरी में भीड़ द्वारा एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या किए जाने और ऐसी ही अन्य घटनाओं के बाद से असहिष्णुता के खिलाफ बोलते रहे हैं। उन्होंने कहा कि अहिंसा नकारात्मक शक्ति नहीं है और ‘हमें अपनी सार्वजनिक अभिव्यक्ति को सभी प्रकार की हिंसा -शारीरिक के साथ साथ मौखिक- से मुक्त करना चाहिए। केवल एक अहिंसक समाज ही हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में खासकर वंचित लोगों समेत सभी वर्गों के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि गांधी जी ने अपने होठों पर राम के नाम के साथ हत्यारे की गोली लेकर हमें अहिंसा की एक ठोस सीख दी। उन्होंने आश्रम में अभिलेखागार और अनुसंधान केंद्र का उद्घाटन करते हुए कहा कि भारत की असल गंदगी गलियों में नहीं, बल्कि हमारे दिमागों में और ‘उनके’ एवं ‘हमारे’, ‘पवित्र’ एवं ‘अपवित्र’ के बीच समाज को विभाजित करने वाले हमारे विचारों को दूर करने की हमारी अनिच्छा में है। गुजरात की अपनी पहली तीन दिवसीय यात्रा पर यहां आए मुखर्जी ने कहा कि हमें स्वच्छ भारत अभियान का स्वागत करना चाहिए और इस सराहनीय अभियान को सफल बनाना चाहिए। हालांकि इसे हमारे दिमागों को साफ करने और गांधी जी की सोच को इसके सभी पहलुओं के साथ साकार करने के एक अधिक बड़े प्रयास की शुरूआत मात्र के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा है, तब तक हम असल स्वच्छ भारत को प्राप्त नहीं कर सकते। मुखर्जी ने कहा कि गांधी जी केवल ‘राष्ट्रपिता’ नहीं है बल्कि हमारे देश के निर्माता भी हैं। उन्होंने हमारे कार्यों को निर्देशित करने के लिए हमें नैतिक बल दिया, एक ऐसा तरीका जिससे हमें आंका जाता है।

उन्होंने कहा कि गांधीजी ने भारत को एक ऐसे समावेशी देश के रूप में देखा था जहां हमारी जनसंख्या का हर वर्ग समानता के साथ रहे और उसे समान अधिकार मिलें। उन्होंने भारत को एक ऐसे देश के रूप में देखा जो अपनी अतुल्य विविधिता और बहुलवाद के प्रति प्रतिबद्धता को लगातार मजबूत करे।

राष्ट्रपति ने कहा कि गांधी जी चाहते थे कि हमारे लोग खुले विचारों और कार्यों के साथ एक साथ आगे बढें और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह यह नहीं चाहते थे कि उनके जीवन एवं संदेश को मात्र एक रस्म के तौर पर मनाया जाए। उन्होंने कहा कि गांधी जी की विरासत और उसकी भावना का असल मूल उनके द्वारा हमें दिए इस संदेश में है कि सभी कार्य (विकास की कड़ी के) ‘आखिरी व्यक्ति’ को दिमाग में रखकर किए जाने चाहिएं। भारत में आखिरी व्यक्ति अकसर महिला, दलित या आदिवासी होता है। मुखर्जी ने कहा कि हमें खुद से लगातार यह सवाल करना चाहिए कि क्या हमारे कार्यों के उनके लिए कोई मायने हैं? उन्होंने कहा कि हमें गरीब से गरीब व्यक्ति को सशक्त बनाना होगा।

राष्ट्रपति ने कहा कि हर व्यक्ति को सामूहिक कल्याण एवं धन के संरक्षक के तौर पर काम करना चाहिए। मानव होने का मूल एक दूसरे पर हमारे विश्वास में निहित है। हम हमारे चारों ओर पर्यावरण को हो रहा जो नुकसान देखते हैं, वह हमें संरक्षण की आवश्यकता की याद दिलाता है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को अपनी आस्था पर भरोसा है, जो अपनी आस्था को लेकर सुरक्षित हैं और अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं, केवल वे ही एक खुले घर में, एक खुले समाज में रह सकते हैं। यदि हम स्वयं को सिमटाए रखते हैं, अन्य प्रभावों से स्वयं को मुक्त रखना चाहते हैं, तो यह दर्शाता है कि हम एक ऐसे मकान में रहने के लिए तैयार हैं जहां ताजा हवा नहीं आ सकती। गांधी जी के पसंदीदा भजन ‘वैष्णव जन तो’ को याद करते हुए उन्होंने कहा कि नरसी मेहता का यह अमर भजन कहता है कि सच्चा भक्त वह है जो दयालु है और दूसरों की पीड़ा को समझता है। मुखर्जी ने जब सुबह आश्रम के ‘हृदय कुंज’ में प्रवेश किया तो उस समय यही भजन गाया जा रहा था। मुखर्जी ने कहा कि दया और दूसरों की पीड़ा को समझने की क्षमता ही हमारी सभ्‍यता का असल आधार है।