खंडवा : मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में ओंकारेश्वर बांध के विस्थापित 22 दिनों से जल सत्याग्रह कर रहे हैं. 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' के बैनर तले करीब चालीस किसान घोघल गांव में पानी में धरने पर हैं और सरकार से जमीन के बदले जमीन की मांग कर रहे हैं.

दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि बांध में 191 मीटर से कम पानी नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसा करने पर दूसरे किसानों को पानी नहीं मिलेगा.

बांध का जलस्तर 189 मीटर से 191 मीटर किए जाने के विरोध में घोगल गांव में 11 अप्रैल से जल सत्याग्रह चल रहा है. आंदोलन करने वालों के समर्थन में गुरुवार को 44 लोग और पानी में उतरे. लगातार पानी में रहने के चलते आंदोलनकारियों की तबीयत बिगड़ रही है, लेकिन उनका जोश बरकरार है.
 
पुनासा तहसीलदार मुकेश काशिव ने आंदोलन कर रहे लोगों से मिलकर सरकार का पक्ष रखा और बताया कि विस्थापित सरकार के पास उपलब्ध लैंड बैंक की जमीन ले लें और उनके लिए प्लॉट की व्यवस्था भी की जाएगी. हालांकि लोगों ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया. आंदोलन कर रहे लोगों ने कहा, 'हक लेंगे या जल समाधि दे देंगे.'

ये कैसी जमीन दे रही है सरकार?
प्रदर्शन कर रहे लोगों ने कहा कि वह लैंड बैंक की जमीनों को पहले भी कई बार देख चुके हैं, ये जमीनें बंजर एवं अतिक्रमित हैं. यही नहीं, राज्य सरकार के राजस्व विभाग के पत्र 28 मई 2001 में साफ कहा गया है कि नर्मदा घाटी मंत्रालय की ओर से पुनर्वास के लिए रिजर्व की गई लैंड बैंक की जमीनें अनउपजाऊ हैं. इन दोनों प्रस्तावों से विस्थापितों का पुनर्वास नीति और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक पुनर्वास संभव नहीं है.

विस्थापितों की मांग है कि सरकार या तो जमीन खरीद कर दे या मौजूदा मार्केट रेट पर न्यूनतम पांच एकड़ जमीन खरीदने के लिए अनुदान दे, जिससे विस्थापितों का सही पुनर्वास हो सके.

लगातार पानी में रहने से बढ़ी ये समस्याएं
सत्याग्रहियों के पैरों में सूजन, शरीर दर्द, खुजली और बुखार की शिकायतें बढ़ रही हैं. वहीं धूप भी परेशान कर देने वाली है. प्रभावितों का कहना है कि अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनती तो यहीं उनकी जल समाधि हो जाएगी. शुक्रवार को फिर डॉक्टरों की टीम ने जल सत्याग्रहियों के पैरों की जांच की और उन्हें इलाज की सलाह दी लेकिन उन्होंने इलाज कराने से मना कर दिया.